संदेश
ज़िन्दगी के पल - कविता - पूनम बागड़िया "पुनीत"
हाँ.. मुझे याद है, ज़िन्दगी से मैंने, दो पल चुराये थे एक पल, जी भर हँसी, दूजे पल आँसू बहायें थे वक़्त के पेड़ से लटका है, हर एक पल जो टूट…
बापू तेरे देश में - कविता - मोहम्मद मुमताज़ हसन
गोरों को था मार भगाया तूने, आज़ादी का ध्वज फहराया तूने! दी कुर्बानी देश की खातिर , मिटे देशभक्ति के आवेश में! लेकिन अब क्या हो रहा है, …
बापू - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शील त्याग गुण कर्म का, मानक था जो लोक। सत्य अहिंसा सारथी, गाँधी थे आलोक।। सहज सरल नित सादगी, मृदुभाषी सद्नीति। शान्ति दूत अतुलित प्रखर…
प्रकटे बापू - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दो अक्टूबर महापर्व है, भारत के इतिहास में प्रकटे बापू भानु इसी दिन, धरा देख तम पाश में। सत्य अहिंसा व्रत को लेकर, चरख चक्र ले हाथ मे…
लाल बहादुर शास्त्री - आलेख - अंकुर सिंह
आज महात्मा गांधी के साथ-साथ देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्मदिन भी है, शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर को शारदा…
दो अक्टूबर - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"
दोनों फूलों ने हिन्दुस्तान को महकाया, भारत के वीर सपूत होने का वचन निभाया। एक ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया, डूबते हुए भारत को मजब…
बापू क्या करोगे यहाँ आकर? - लेख - सतीश श्रीवास्तव
पूज्यनीय बापू, सादर प्रणाम। बापू आपके सपनों का भारत वैसा नहीं बन सका इस बात का हमें कम और उन्हें ज्यादा खेद रहता है जिनके कन्धों पर दे…
लाचार - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
गांधी तेरे देश में आज भी तेरे बंदर मौन हैं, अब तो लगता है उन्होंने ने भी इसे नियति का खेल समझ लिया है क्योंकि अब वे भी विचलित कहां हैं…
पाश्चात्य परिधान एवं आधुनिक विचार - निबंध - प्रवीन "पथिक"
"तन परिधारणात् परिधानः" आचार्य पाणिनि का यह कथन परिधान की सार्थकता को पूर्णरूपेण परिलक्षित करता है, परंतु वर्तमान काल में यह…
मन वेदना - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अहंकार निज बुद्धि का, तिरष्कार नित अन्य। दावानल अज्ञानता, करते कृत्य जघन्य।।१।। श्रवणशक्ति की नित कमी, कोपानल नित दग्ध। तर्क…
बलात्कार - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
हैवानों की हवस का कब तक शिकार होंगी एक एक करते करते कितनी निर्भया जांन निसार होंगी। न तरस आता है उन्हें किसी पर उन्हें नियम कानून का…
आखिर कब तक? - कविता - संतोष सिंह
सींची होगी जमीं, अश्रुओं की बरसात से। गुनहगार तेरा ये समाज है, इस कुकर्म बिसात से। दिल्ली, उन्नाव, हाथरस, ये क्या हो रहा है ? मां भार…
मुस्कान बन के आये हो - ग़ज़ल - डॉ. यासमीन मूमल "यास्मीं"
ग़मे-हयात में मुस्कान बन के आए हो।। ख़िज़ां के दौर में रंगे बहार लाए हो।। न शर्मसार किये हो न आज़माए हो। ग़ुरूर ये है फ़क़त दिल से दिल लगाए ह…
बेटी - कविता - अतुल पाठक
स्वागत के साथ आने दो बेटी, घर-घर में भाग्य लाती है बेटी। मुस्काए तो लगती सुमन बेटी, अंधकार में उजाले की किरण बेटी। चिड़िया की तरह चहकती…
घनी छाँव बन जाइए - कविता - डॉ. विजय पंडित
जिंदगी सबसे हँसी खुशी मिलजुल कर बिताइए..... आज के हालात में कल का कुछ पता नहीं गिले शिकवे शिकायत सब तुम भूल भी अब जाइए.... जिंदगी भर…
युवा का प्रलाप - गीत - दिवाकर शर्मा "ओम"
भारत का यूवा कहता है , निश दिन वह यह गम सहता है । ताने सहता है इस जग के , अपनी प्रतिभा उर में रख के । वह भारत का शक्ति बिन्दु है , नव …
मोबाइल - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
मोबाइल जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, ऐसे लगता है इसके बिना जीवन में रखा ही क्या है? मोबाइल जन की जरूरत है, इसके बिना जीने की अब न को…
कोरोना योद्धाओं को सलाम - आलेख - संस्कृती शाबा गावकर
कोरोना वैश्विक महामारी ने अब तक पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। दुनिया भर में इस वाइरस की वजह से संक्रमण तथा मौत के आकड़े बढ़ते…
मिटे भोर पा अरुणिमा - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सुन्दर मधुरिम मांगलिक, हो जीवन उल्लास। हो उदार मानस मधुर, नवप्रभात उद्भास।।१।। प्रतिमानक लेखन बने, देश काल परिवेश। सत्य पूत अभिव्यक्ति…
मंजिल का पता पूछो धार से - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
मंजिल वो नहीं होती जहाँ हम जाना चाहते हैं मंजिल वो होती है जहाँ वह हमें ले जाती है। यह अलग बात है कि हम मंजिल को देखते हैं और मंजि…
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