डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली
मन वेदना - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
गुरुवार, अक्तूबर 01, 2020
अहंकार निज बुद्धि का, तिरष्कार नित अन्य।
दावानल अज्ञानता, करते कृत्य जघन्य।।१।।
श्रवणशक्ति की नित कमी, कोपानल नित दग्ध।
तर्कहीन थोथी बहस, सुन हो जनता स्तब्ध।।२।।
सत्ता सुख मद मोह में, राजनीति आगाज़।
फँसी मीडिया सूर्खियाँ, दबी आम आवाज़।।३।।
नित होता नैतिक पतन, हाथरसी दुष्काम।
शर्म हया सब भूल जन, मानवता बदनाम।।४।।
सुरसा सम चाहत मनुज, बनता तिकरमबाज़।
झूठ लूट हिंसा कपट, धन वैभव सरताज।।५।।
पाएँ कहँ इन्सानियत, सत्य धर्म ईमान।
दीन सदा श्रीहीन है, होता नित अवसान।।६।।
किसको चिन्ता देश की, प्रगति प्रजा सम्मान।
जाति धर्म प्रसरित घृणा, नारी का अपमान।।७।।
दया धर्म करुणा अभी, कहँ पाएँ अब देश।
जिसकी है जैसी पहुँच, गढ़ता निज परिवेश।।८।।
हो समाज दुर्भाष बस, मर्यादा उपहास।
बदले की चिनगारियाँ, तुली दहन विश्वास।।९।।
रीति नीति रचना विधा, बदली लेखन भाव।
आज वही नफ़रत वतन, जाति धर्म दे घाव।।१०।।
स्वार्थ सिद्धि में सब दफ़न, न्याय त्याग कर्तव्य।
मान दान अवदान यश, दीन हीन हन्तव्य।।११।।
कवि निकुंज मन वेदना, आरक्षण का दंस।
अमन प्रीति मुस्कान हर, सुख वैभव बन कंस।।१२।।
सिसक रही माँ भारती, देख स्वार्थ दुष्कर्म।
लज्जा श्रद्धा गुमसुदा, कहँ परहित सद्धर्म।।१३।।
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