संदेश
हित-अहित - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
आपसी संबंधों का तोड़ना नहीं है आपके हित में मित्रता तोड़ना नहीं है आपके हित में आना जाना बंद करना नहीं है आपके हित में जीवन छोटा है क…
पुष्टिकारक बाजरा - गीत - उमेश यादव
सर्वश्रेष्ठ पोषक शरीर का, नियमित इसको खाएँ। पुष्टिकारक बाजरे को हम, भोजन में अपनाएँ॥ सर्वगुण संपन्न अन्न यह, बल आरोग्य बढ़ाता है। हृष्…
प्रज्वलित कर लो दीप सत्य का - कविता - गोकुल कोठारी
कितना घना हो चाहे अँधेरा, एक दीप से डरता रहा है, हारा नहीं जो अब तक तमस से, हर जलजले में जलता रहा है। कहता है सूरज से आँखें मिलाकर, अग…
रामराज्य - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
नौजवान इस देश के अब एक नया इतिहास रचाएँगे, भ्रष्ट ग़ुंडे अपराधी लोगों को अब नेता नहीं बनाएँगे। एक अखंड भारत की घर-घर में अलख जगाएँगे,…
अपना सुधार सर्वोत्तम सेवा - कविता - उमेश यादव
अपना सुधार सर्वोत्तम सेवा, सुखमय घर संसार है। स्वयं बदलना मानवता पर, बहुत बड़ा उपकार है॥ समझें मन के भावों को हम, सही मार्ग अपनालें। …
लफ़्ज़ों के फूलें - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
लफ़्ज़ों के फूलें मनभावन, आनंद सकल सुख देता है। नव प्रभात अरुणिम मुस्कानें, मधुरिम मिठास दे जाता है। लफ़्ज़ों का रस अनमोल सुखद, संत…
पशुओं से भी कर प्यार तू - कविता - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
है अगर ज़िंदा मनुजता तो सहज स्वीकार तू। इन्सानों से ही नहीं पशुओं से भी कर प्यार तू॥ पूछते है आज तुझसे खेत और खलिहान यह। पूछती पगडण्…
बालहठ - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
मर्यादा को लाँघ जाता है बालहठ, उसे बढ़ने दो समय के अनुसार, उन्हें रोक देना जब सीमा का अतिक्रमण हो, उनमें आकाश छूने की चाहत है आपको चा…
आदमी ज़िंदा है - कविता - संजय राजभर 'समित'
मौन रहना– आमंत्रण है शोषण का द्योतक है कायरता का। कभी-कभी एक ग़ुस्सा है एक गंभीर ज्वालामुखी का फटने पर विनाश। कुछ भी हो दोनों में …
कृष्ण होना आसान नहीं किंतु नामुमकिन भी नहीं - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
ऐसा क्यों है कि बहुत सारे लोग मुझे जान नहीं पाते हैं?श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने कहा है। ऐसा इसलिए है शायद हम अपनी भौतिकता में…
चलो प्रेम का दिया जलाएँ - कविता - रमाकान्त चौधरी
नफ़रत का अँधियार मिटाएँ, चलो प्रेम का दिया जलाएँ। आग स्वार्थ की लगी हुई है, संवेदना मरी हुई है। कोई किसी का हाल न पूछे, बेगैरत क…
विषय, विचार और कामनाओं से मुक्ति ही स्वतंत्रता है - लेख - आर॰ सी॰ यादव
नीतिगत निर्णय लेना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। यह एक ऐसी नैसर्गिक प्रतिभा जिसके बिना पर मनुष्य अपने गुण-अवगुण, यश-कीर्ति, हानि-लाभ और …
अपनी खोल से निकलकर - कविता - सूर्य मणि दूबे 'सूर्य'
कभी अपनी खोल से निकलकर, किसी के मन में झाँक कर देखो। किसी के दुख दर्द को, मन की आँखों से आँक कर देखो। उनकी परिस्थितियों में जाकर, एक प…
काँटों से अपनी यारी - कविता - राकेश राही
फूलों से इश्क़ क्या राही काँटों से अपनी यारी, काँटों की चुभन में वफ़ा मोहब्बत से है प्यारी। इश्क़ के बाज़ार में दर्द-ओ-ग़म लेकर खड़े रहे, लु…
नवभोर - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवभोर नमन मंगलमय जन, खिले चमन नव प्रगति सुमन। पथ नवल सोच नवशोध सुयश, नवयुवा देश हित भक्ति किरण। कर्म कुशल युवा जन मन भारत, सच्चरि…
क़र्ज़ - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
क़र्ज़ न करियो, क़र्ज़ घटाता है कुटुंब और ख़ुद का मान। उधारी दिन का चैन, रात की नींद खोकर निरुत्तर रहता है इंसान। क़र्ज़ ही तो है जो अच्छे-खा…
चुप रहो - कविता - अमरेश सिंह भदौरिया
यदि सच कहना चाहते हो तो आईने की तरह कहो, वरना चुप रहो। परंपरा परिपाटी का सच, हल्दी वाली घाटी का सच, कुरुक्षेत्र की माटी का सच, या... स…
दिल को गंगा जली बना दो - सरसी छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
दिल को गंगा जली बना दो, तन वृंदावन धाम। घट-घट में अब बसा हुआ है, राधे-राधे नाम।। बिलख रही है सभी गोपियाँ, व्याकुलता का दौर। आस मिलन की…
जल जीवन है इसे बचाएँ - आलेख - डॉ॰ शंकरलाल शास्त्री
अप्सु भेषजम्। जल औषधि है। जल का ही दूसरा नाम जीवन भी है। समूचे विश्व में प्रतिवर्ष विश्व जल दिवस मनाया जाता है। चारों और बड़े-बड़े विज…
लड़कर क्या मिलेगा? - कविता - चंदन कुमार 'अभी'
यह हमारा है वह तुम्हारा, कहकर क्या मिलेगा? एक दूसरे की ताक़त बनों, आपस में लड़कर क्या मिलेगा? समाधान नहीं है रण इसका, रणभूमि में उतड़कर क…