है अगर ज़िंदा मनुजता तो सहज स्वीकार तू।
इन्सानों से ही नहीं पशुओं से भी कर प्यार तू॥
पूछते है आज तुझसे खेत और खलिहान यह।
पूछती पगडण्डिया, चौराहे, घर शमशान यह॥
मीत से क्यों प्रीत तोड़ी क्यों बना तलवार तू।
इन्सानों से ही नहीं पशुओं से भी कर प्यार तू॥
पूछते शशि, भानू, सरिता, सर समन्दर पूछता।
सृष्टि का कण-कण यह पूछे क्यूँ करी यह क्रूरता॥
स्वार्थ हित इन मूक जीवों का न कर संहार तू।
इन्सानों से ही नहीं पशुओं से भी कर प्यार तू॥
कृष्ण की भूमी पे क्यूँ गायों पे अत्याचार है।
शम्भू के बैलों का बूचड़ख़ानों में संहार है॥
देवी के बाघों पे अब तो मत उठा हथियार तू।
इन्सानों से ही नहीं पशुओं से भी कर प्यार तू॥
राम केशव का यह भारत गुरु नानक का जहाँ।
बुद्ध, गौत्तम, बापू, ऋषि मुनियों का संदेशा यहाँ॥
अहिंसा के सदुपदेशों का तो कर सत्कार तू।
इन्सानों से ही नहीं पशुओं से भी कर प्यार तू॥
हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी' - सवाई माधोपुर (राजस्थान)