अमरेश सिंह भदौरिया - रायबरेली (उत्तर प्रदेश)
चुप रहो - कविता - अमरेश सिंह भदौरिया
शुक्रवार, अप्रैल 08, 2022
यदि सच कहना चाहते हो
तो आईने की तरह कहो,
वरना चुप रहो।
परंपरा परिपाटी का सच,
हल्दी वाली घाटी का सच,
कुरुक्षेत्र की माटी का सच,
या...
सत्य-अहिंसा लाठी का सच,
यदि इनमे से आपका सच
मेल खाता है तो शौक़ से कहो,
वरना चुप रहो।
आँगन की दीवारों का सच,
मंदिर या गुरुद्वारों का सच,
मज़हब या मीनारों का सच,
या...
खून सने अख़बारों का सच,
यदि इनमें से आपका सच,
मेल खाता है तो शौक़ से कहो,
वरना चुप रहो।
भगत सिंह बलिदानी का सच,
पन्ना की क़ुर्बानी का सच,
बादल-बिजली-पानी का सच,
या...
खेती और किसानी का सच,
यदि इनमे से आपका सच
मेल खाता है तो शौक़ से कहो,
वरना चुप रहो।
माँ के व्रत-उपवास का सच,
उर्मिला के अहसास का सच,
वैदेही वनवास का सच,
या...
शबरी के विश्वास का सच,
यदि इनमे से आपका सच,
मेल खाता है तो शौक़ से कहो,
वरना चुप रहो।
सत्तासीन दलालों का सच,
पंचायत, चौपालों का सच,
मुफ़लिस, भूख, निवालों का सच,
या...
अनसुलझे सवालों का सच,
यदि इनमे से आपका सच,
मेल खाता है तो शौक़ से कहो,
वरना चुप रहो।
क़ातिल बाज़ निगाहों का सच,
करूण सिसकियाँ आहों का सच,
ख़बरों या अफ़वाहों का सच,
या...
भीड़-भरे चौराहों का सच,
यदि इनमे से आपका सच
मेल खाता है तो शौक़ से कहो,
वरना चुप रहो।
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