लड़कर क्या मिलेगा? - कविता - चंदन कुमार 'अभी'

यह हमारा है वह तुम्हारा,
कहकर क्या मिलेगा?
एक दूसरे की ताक़त बनों,
आपस में लड़कर क्या मिलेगा?

समाधान नहीं है रण इसका,
रणभूमि में उतड़कर क्या मिलेगा?
मिट जाएगा अस्तित्व एक दूसरे का,
इस तरह उजड़कर क्या मिलेगा?

फ़ायदा नहीं है जंग से किसी को,
सब विध्वंस करके क्या मिलेगा?
वक्त लगता है एक बस्ती बनाने में,
अनेकों बस्तियाँ मिटाकर क्या मिलेगा?

विनाशकारी प्रदर्शन है सामर्थ्य की,
इस तरह आज़मा कर क्या मिलेगा?
गिर जाओगे सब की नज़रों में,
फिर ऐसा सामर्थ्य दिखाकर क्या मिलेगा?

कोशिश करो मसला निपटाने की,
परस्पर नीचा गिराकर क्या मिलेगा?
ख़तम हो रही है वजूद इंसानियत की,
भाईचारा मिटाकर क्या मिलेगा?

चंदन कुमार 'अभी' - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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