शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
बालहठ - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
सोमवार, अगस्त 29, 2022
मर्यादा को लाँघ जाता है
बालहठ,
उसे बढ़ने दो
समय के अनुसार,
उन्हें रोक देना
जब सीमा का अतिक्रमण हो,
उनमें आकाश छूने की चाहत है
आपको चाहिए–
उनके शौर्य को
उनकी चाहत को
पंख दो।
उन्हें पहचानों
अपना सम्पूर्ण समर्पण कर
उन्हें लक्ष्य तक पहुँचने दो;
उन्हें रोकना, यदि बालहठ से
अभिमान हो,
लेकिन जाने न पाए
स्वाभिमान,
और बना रहे–
उनका बालहठ।
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