ऐ व्यस्त ज़िंदगी! - कविता - आर्तिका श्रीवास्तव

ऐ व्यस्त ज़िंदगी! तुझसे दो पल मुझे चुराने है,
कुछ प्यारे लम्हें अपनों के संग बिताने हैं।

कभी मैं बैठूँ संग सहेली, कभी दोस्तों संग गाऊँ,
कभी मैं पाऊँ संग प्यार का और उसपे मैं इतराऊँ,
बिन सोचे मैं पाऊँ वो पल जो बड़े मस्ताने है।

ऐ व्यस्त ज़िंदगी! ...

कभी मैं बैठूँ नदी किनारे, बस ख़ुद में ही खो जाऊँ,
बिन बात बात के बात करूँ, उस बात पे फिर मैं मुस्काऊँ,
बिन सोचे मैं पाऊँ वो पल जो बड़े दीवाने हैं।

ऐ व्यस्त ज़िंदगी! ...

मात-पिता की सेवा कर लूँ, फिर से बचपन जी पाऊँ,
गुड़िया घर-घर खेल खिलौनों को फिर से मैं अपनाऊँ,
बिन सोचे मैं पाऊँ वो पल जो बड़े बचकाने हैं।

ऐ व्यस्त ज़िंदगी! ...

आर्तिका श्रीवास्तव - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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