घर में रहा अकेले तो भी,
मैंने जीना सीख लिया है।
जी घबडा़या गीता पढ़ ली,
सीखी मैंने जीवन धारा।
फिर चाहा तो गीत बनाया,
रहा गुनगुना यही सहारा।
काट रहा है सूना घर पर,
मैने जीना सीख लिया है।
प्रात:उठ कर ईश चरण में,
वंदन-जप माला को फेरूँ।
मुझे शक्ति दो मेरी माते,
पद रज धारे तुमको हेरूँ।
नयन नीर ही संबल मेरे,
मैंने जीना सीख लिया है।
आठ दशक में शिथिल अंग हैं,
पर बेटों ने धीरज बांधा।
पर उपकार सहिष्णु जीवनी
कविता देती मुझको कांधा।
संगिनि बिन एकाकी हूँ पर,
मैंने जीना सीख लिया है।
करे 'अंशुमाली' चिर सेवा,
दीन अकिंचन निर्धन हारे।
कुटिया महल झोपड़ी जाऊँ,
गले लगा लूँ जन-जन सारे।
यही करूँगा जीवन रहते,
मैंने जीना सीख लिया है।
शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)