अमरेश सिंह भदौरिया - रायबरेली (उत्तर प्रदेश)
बीत रहा जीवन - कविता - अमरेश सिंह भदौरिया
सोमवार, जनवरी 31, 2022
अधरों पर मुस्कान है और आँखों में उलझन,
संकल्पों और विकल्पों में बीत रहा जीवन।
समझौते में हरदम रहती जीने की मजबूरी,
कभी-कभी सपनो में कुछ क्षण बनते है कर्पूरी।
आगत और विगत की चिन्ता में चलती धड़कन,
संकल्पों और विकल्पों में बीत रहा जीवन।
आड़ी तिरछी रेखाओं से मिल कर बनता चेहरा,
बेबसी का हर रंग होता है ख़ूब गहरा।
वसनहीन तन में शोभा बनती है उतरन,
संकल्पों और विकल्पों में बीत रहा जीवन।
साँसों के संग आती-जाती आशा और निराशा,
धूप सुनहरी देती सबको संयम की परिभाषा।
पत्थर में घिसने पर भी चंदन रहता चंदन,
संकल्पों और विकल्पों में बीत रहा जीवन।
कसौटियों में कसने पर होती पूरी पहचान,
परिस्थितयों की दासता सहता हर इंसान।
अँगारों में जलकर 'अमरेश' जाती कब ऐंठन,
संकल्पों और विकल्पों में बीत रहा जीवन।
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