जीने की परिभाषा सीखो - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

यदि परिवार चलाना हो तो,
जीने की परिभाषा सीखो।

थोड़े दिन का यह जीवन है,
आना जाना लगा हुआ है।

नश्वरता बैठी अग-जग में,
यह क्रम अविरल बना हुआ है।
मूठी बाँधे हम आए हैं,
जाने में कर खुला हुआ है।

क्षणिक जीवनी बता रही है,
सहिष्णुता की भाषा सीखो।

मृदु भाषा से हृदय जीत लो,
विजय इसी में कब जानोगे?
अक्षर सदा अमर होते हैं,
महामंत्र यह कब मानोगे?
जब कोई दुःख सना हुआ हो,
निज कर क्षत्रप कब तानोगे?

परहित परपीड़ित में आशा,
भरने की प्रत्याशा सीखो।

गौतम बुद्ध कहानी जानो,
गांधी का इतिहास उठाओ।
पिया गरल सुकरात धरा में,
महावीर की बात सुनाओ।
राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन,
भ्राताओं की कथा  बताओ।

जगती याद करे कुछ ऐसा,
यह मन में अभिलाषा सीखो।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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