स्वाति कुमारी - छपरा (बिहार)
आहिस्ता चल ज़िन्दगी - कविता - स्वाति कुमारी
गुरुवार, अगस्त 25, 2022
आहिस्ता चल रहीं ज़िन्दगी,
अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाक़ी है,
कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है,
कुछ फ़र्ज़ निभाना बाक़ी है,
रफ़्तार में तेरे चलने से,
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए,
रूठो को मनाना बाक़ी है,
रोतो को हँसाना बाक़ी है,
कुछ रिश्ते बनकर टूट गए,
कुछ जुड़ते-जुड़ते छूट गए,
उन टूटे-छूटे रिश्तों के,
ज़ख़्मों को मिटाना बाक़ी है,
कुछ हसरतें अभी अधूरी है,
कुछ काम भी और ज़रूरी हैं,
जीवन की उलझे पहेली को,
पूरा सुलझाना बाक़ी है,
जब साँसों को थम जाना हैं,
फिर क्या खोना क्या पाना है,
पर मन के ज़िदी बच्चे को यह बात बताना बाक़ी है।
आहिस्ता चल ज़िन्दगी
अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाक़ी है,
कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है,
कुछ फ़र्ज़ निभाना बाक़ी है।
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