वो ग़ज़ल तुम्हारी है लेकिन वो मेरे मन की भाषा है - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'

वो ग़ज़ल तुम्हारी है लेकिन वो मेरे मन की भाषा है,
जब भी पढ़ती हूँ लगता है यह जन्मों की अभिलाषा है।

हर शब्द शब्द कहता मुझसे यह है मेरी ही परछाई,
जो भी है सब कुछ मेरा है तिलभर भी नहीं निराशा है।

मन पर क़ाबू रखना मुश्किल चाहो तो मुश्किल हल कर दो,
कह दो कह भी दो प्रिय सच सच अब दिल सुनने को प्यासा है।

अनुपम सम्बन्ध बनाया है मैने तुमसे एक रूहानी,
मिलजुल कर इसे निभालेंगे क्या इसमें कहीं हताशा है।

चाहे तुम चुप ही रहना पर अहसास नहीं मिटने देना,
संकेतों में अनुराग रहे यह सच्चा एक दिलासा है।


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