पार्थ - कविता - राकेश कुशवाहा राही

या तो युद्ध करो तुम या फिर हँसी सहो अपनो की,
तज कर मोह संहार करो तुम अभी सभी अपनो की।
जीकर तुम यथार्थ में मत बात करो मरे सपनो की,
आने वाली पीढ़ी को कुछ पाठ पढ़ाओ धर्मो की। 

या तो युद्ध करो तुम या फिर हँसी सहो अपनो की।

क्यों करते हो इंतज़ार अब तो करो संधान पार्थ,
भावुक हो कम न करो गांडीव की सामर्थ्य पार्थ।
सभी अधर्मी सम्मुख तेरे है धर्म तुम्हारे साथ पार्थ,
सोच धर्म के बारे में तुम प्रत्यंचा को कस लो पार्थ। 

या तो युद्ध करो तुम या फिर हँसी सहो अपनो की।

कर्म फल की चिंता छोड़ कर्तव्य पथ पर बढ़ जाओ,
जो होगा सब निश्चित है माध्यम बन तुम लड़ जाओ।
जो होगा सब अच्छा होगा ये विचार मन भर जाओ,
मृत्यु तो सबकी निश्चित है नश्वर तन को तज जाओ। 

या तो युद्ध करो तुम या फिर हँसी सहो अपनो की।

क्यों मृत्यु का भय है तुमको अपने आत्मजनो की,
मरे हुए सब पहले से ही है समझो वाणी केशव की।
कुछ तो सम्मान करो तुम निज लिए गए वचनों की,
सब मुझमें ही निहित है परवाह किसे परिणामों की। 

या तो युद्ध करो तुम या फिर हँसी सहो अपनो की।

याद करो तुम सभा दृश्य जब निरूपाय तुम रोए थे,
अपनी ही कुल की गरिमा को व्यर्थ ही तुम खोए थे।
भूल गए अज्ञातवास या भूल गए कर्ण की बातो को,
शकुनि की चालों में फँस कर राजपाट सब हारे थे।

या तो युद्ध करो तुम या फिर हँसी सहो अपनो की।

अब भी तुम न जागे तो ज्ञान तुम्हारे किस काम का,
क्यों व्यर्थ ही ढो रहे हो अर्जुन मान अपने नाम का।
लहू तुम्हारा क्यों ठंडा है यह काम नहीं क्षत्रिय का,
दृढ़ मन से युद्ध करो समय नहीं है सोच विचार का।

या तो युद्ध करो तुम या फिर हँसी सहो अपनो की।

सत्य कहा तुमने केशव! मैं अज्ञानता में डूबा था,
भूल स्वयं को मोहमाया में बीच भंवर में फँसा था।
अब गांडीव की देखो मार बीच समर चला आज,
धर्म की ही सदा जय होगी प्रण लेता हूँ मैं आज।

या तो युद्ध लड़ूँगा मैं या फिर शीश कटा दूँगा मैं,
केशव जब तुम साथ मेरे तो लड़ने से क्यों डरूँ मैं।
चुन-चुन कर मारूँगा अब कर्मपथ से विमुख नहीं मैं,
सार्थक अपना नाम करूँगा गांडीव के संधान में मैं।

या तो युद्ध करूँगा मैं या फिर शीश कटा दूँगा मैं।

राकेश कुशवाहा राही - ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)

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