अरकान : मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
तक़ती : 221 2121 1221 212
जब चादर-ए-यक़ीं में कई छेद हो गए,
हम चीज़ क्या थे हममें भी मतभेद हो गए।
पहले भी इस जहाँ में न थे ग़म शनास लोग,
इस दौर में तो और भी नापैद हो गए।
ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म से रिहा हो गए थे हम,
उनकी गुदाज़ बाँहों में फिर क़ैद हो गए।
तेरी निगाह-ए-नाज़ ने जिस जिसकी जान ली,
वो लोग मरके ज़िन्दा-ओ-जावेद हो गए।
पहले भी यार ख़ुद को मैयस्सर नहीं थे हम,
तुमसे बिछड़के और भी नापैद हो गए।
सालिब चन्दियानवी - हापुड़ (उत्तर प्रदेश)