जब चादर-ए-यक़ीं में कई छेद हो गए - ग़ज़ल - सालिब चन्दियानवी

अरकान : मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
तक़ती : 221  2121  1221  212

जब चादर-ए-यक़ीं में कई छेद हो गए,
हम चीज़ क्या थे हममें भी मतभेद हो गए।

पहले भी इस जहाँ में न थे ग़म शनास लोग,
इस दौर में तो और भी नापैद हो गए।

ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म से रिहा हो गए थे हम,
उनकी गुदाज़ बाँहों में फिर क़ैद हो गए।

तेरी निगाह-ए-नाज़ ने जिस जिसकी जान ली,
वो लोग मरके ज़िन्दा-ओ-जावेद हो गए।

पहले भी यार ख़ुद को मैयस्सर नहीं थे हम,
तुमसे बिछड़के और भी नापैद हो गए।

सालिब चन्दियानवी - हापुड़ (उत्तर प्रदेश)

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