सिर चढ़ बोलेगा - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी

जटिल प्रश्न है, कठिन घड़ी है
इस मिथ्या को जब तोड़ेगा
वक्त तेरे संग ज़ुबाँ मिलाकर
सबके सिर चढ़ बोलेगा।

क्या कोई प्रश्न हुआ है जग में?
जिसका कोई हल ना निकले
आज नहीं तो कल निकलेगा
मुमकिन नहीं के कल ना निकले
अपने ज्ञान की सीमा को
जब सकल विश्व से जोड़ेगा
वक्त तेरे संग ज़ुबाँ मिलाकर
सबके सिर चढ़ बोलेगा।

ठान लिया तो सब है मुमकिन
मान लिया तो हार मिलेगी
गर कठिन प्रश्न के हल ढूँढ़ोगे
तो सफलता कई-कई बार मिलेगी
जब भी तू ख़ुद के सम्मुख
भेद निज मन के खोलेगा
वक्त तेरे संग ज़ुबाँ मिलाकर
सबके सिर चढ़ बोलेगा।

जीवन मूल्यों को उलझाए
तैर रहें हैं प्रश्न अनेक
हल तुम्हे ही है ढूँढ़ के लाना
आशान्वित हैं तुमसे प्रत्येक
दृढ़ इच्छाएँ तो तुझसे कहतीं हैं
के तू चाहेगा... तो कर लेगा
वक्त तेरे संग ज़ुबाँ मिलाकर
सबके सिर चढ़ बोलेगा।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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