चलाे चले हम कसम ये खालें - ग़ज़ल - के॰ पी॰ सिंह 'विकल'

अरकान : मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन
तक़ती : 12122  12122  12122  12122

चलाे चले हम कसम ये खालें, कि हर किसी से वफ़ा करेंगे,
कभी किसी काे न देंगे दुख ही, न हम किसी से दग़ा करेंगे।

न हाे किसी के भी दिल मे नफ़रत, अमन सदा ही रहे जहाँ मे,
भला हमेशा हाे हर किसी का, यही ख़ुदा से दुआ करेंगे।

चमन मे फिर से ही गुल खिलेंगे, यक़ीन मानाे ये बात तय है,
कि बाद इसके हम हर किसी के, गले मिलेंगे मज़ा करेंगे।

जाे साथ तू है ताे फिर कमी क्या, जहाँ की दाैलत है साथ मेरे,
बसा के दिल में तुम्हारी सूरत, हमेशा पूजा किया करेंगे।

सफ़र भले ही कठिन हाे कितना, कि चाँद की राेशनी ढली हाे,
तुम्हारी यादाें के जुगनूँ लेकर, अँधेराे में हम चला करेंगे।

रहेगी काेशिश सदा यही बस, हर एक घर मे ही राेशनी हाे,
अँधेरे घर की भी देहली पर, चराग़ बन कर जला करेंगे।

दुखाें का सागर हाे ज़िंदगी में, सफ़र कठिन हाे भले ही कितना,
कभी भी दुख काे न लेंगे दिल पर, ग़माे मे भी हम हँसा करेंगे।

के॰ पी॰ सिंह 'विकल' - पंतनगर (उत्तराखंड)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos