ईर्ष्या-निन्दा त्याग दो, कबहुं न राखो पास।
निन्दा से प्रभुता घटै, ईष्या उपजै रास॥
ईर्ष्या उपजै रास, अरे! निन्दा से दूरी।
दोनों मन के दोष, 'अंशु' हैं जैसे छूरी॥
ईर्ष्या से अनुराग, न फटकै पास परिन्दा।
अरि बाढ़ैं चहुँओर, तजो मन ईर्ष्या-निन्दा॥
शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)