संदेश
तेरी यादें - कविता - रेखा टिटोरिया
यादों के गलियारे से जब भी पीछे जाती हूँ तेरी यादें तंग करती हैं। यादों के तानो बानो से कभी उधेड़ूँ कभी बनूँ इन उलझे सुलझे धागों में जब…
सजन अब आने वाले हैं - गीत - अभिषेक मिश्रा
पपीहा धीरे-धीरे बोल सजन अब आने वाले हैं! आने वाले हैं सजन अब आने वाले हैं!! पपीहा धीरे-धीरे बोल सजन अब आने वाले हैं! अंतर्मन के पट तू …
ज्ञान की खोज - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ज्ञान की खोज में हम मृगतृष्णा की तलाश जैसे भटकते रहते हैं, अपने अंदर झाँकना तो नहीं चाहते हैं, ज्ञान को लेना ही नहीं चाहते। बस अपनी बे…
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई - कविता - राघवेंद्र सिंह
स्वाभिमान के रक्त से रंजित, हुई धरा यह प्रिय पावन। हिला हुकूमत का सिंहासन, और हिला सन् सत्तावन। राजवंश की शान थी जागी, जाग उठा वीरों क…
क़लमकार - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
कविता में क्या लिखोगे कवि? शृंगार, सौंदर्य के गीत कामिनी कंचन के आर्वत– नहीं नहीं लिखो– शहीदों का बलिदान भ्रष्टाचार का उन्मूलन दहेज कन…
पहली मुहब्बत - गीत - अभिनव मिश्र 'अदम्य'
हृदय पत्रिका पर प्रणय की कहानी, नहीं भूल पाया वो यादें पुरानी। हमारी हक़ीक़त थी वो, पहली मुहब्बत थी वो। नयन से नयन जब ये परिचित हुए थे, …
ए बदरी - भोजपुरी गीत - धीरेन्द्र पांचाल
सुखि गइलें पोखरा आ जर गइलें टपरी, ए बदरी। कउना बात पे कोहाइ गइलू ए बदरी। देखा पेड़वा झुराई गइलें ए बदरी। बनरा के पेट पीठ एक भइलें घानी।…
नौका - कविता - संजय कुमार चौरसिया
नौका तेरी चौका में गुण कितने हैं, क्या जाने कोई? इस पार किनारे से लेकर उस पार किनारे तक जाती। उस पार लगाते धीरे-धीरे, कितने उथल-पुथल …
बढ़े जा रहे हैं - ग़ज़ल - संजय राजभर 'समित'
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 बढ़े जा रहे हैं, चले जा रहे हैं। सद गुरू कृपा बिन, फँसें जा रहे हैं। चकाचौंध माया, ठगे जा रहे हैं।…
आओ हम भी कुछ त्याग करें - कविता - ईशांत त्रिपाठी
वन/विपिन में एक वनराज था भूखा, देख रहा था इधर उधर। थोड़ा सा आगे चलते ही, दिख पड़ा नवजात गौ-शावक युगल। भूख से खूँखार गर्जन करते, जैसे ह…
पर्यावरण संरक्षण - कविता - रमाकांत सोनी
कुदरत का उपहार वन, जन जीवन आधार वन। जंगल धरा का शृंगार, हरियाली बहार वन। बेज़ुबानों का ठौर ठिकाना, संपदा का ख़ूब खजाना। प्रकृति मुस्कुरा…
नवजोत उमंगें हर पल मन - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवजोत उमंगें हर पल मन, उल्लास नवल हो जाता है। नव ध्येय भोर कर्त्तव्य किरण, विश्वास सबल बन जाता है। नित नवल सोच नव शोध सुपथ, उन्मुक्त उ…
बेटी - लघुकथा - डॉ॰ यासमीन मूमल 'यास्मीं'
(ऑल इंडिया अस्पताल का कैंसर वार्ड) याशी - माँ अब कैसी तबियत है? माँ - घबराओं नहीं बेटा बेहतर हूँ। याशी - मगर... माँ मुस्काते हुए पगली …
अहसास - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'
आज फिर से अहसास हुआ मेरा ख़ुद में ना होने का साँसे चल रही है, धड़कनों की रफ़्तार तेज़ है। गूढ़ तन्हाई तन में, अपना रास्ता बना रही है म…
पथ के पत्थर - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
कुछ उठाते कुछ गिराते कुछ चुभते कुछ सहलाते। कितनी तरह के होते हैं ये यात्रा पथ के पत्थर हमारे।। कुछ प्रेरणा देते हैं ऊँचा उठने की कुछ ड…
कच्ची मिट्टी - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
कच्ची मिट्टी सी मैं, सबके रंग में रंग जाऊँ, ढाल ख़ुद को...! अपनो की ख़ुशियों में, मन ही मन सुकून पाऊँ, हर रिश्ते के साँचे में, ढाल ख़ुद …
मैं एक पत्रकार हूँ - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मैं एक पत्रकार हूँ, मैं एक पत्रकार हूँ। समाज का हूँ आईना, अवाम का ग़ुबार हूँ। कहाँ पे क्या सही हुआ, कहाँ पे क्या ग़लत हुआ। कहाँ पे क्या …
हे तरुवर! - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
हे तरुवर! गर तुम न होते साँस कहाँ से लाते हम? खट्टा-मीठा और रसीला स्वाद कहाँ से पाते हम? लाल गुलाबी नीले पीले ख़ुशबू वाले फूल न होते, क…
सुनो कुछ कहना है - कविता - मेहा अनमोल दुबे
सुनो कुछ कहना है– ज़िंदगी कभी आसान नहीं होती, आसान बनाना पड़ता है, कभी-कभी बेवजह भी गुनगुनाना पड़ता है, ख़्वाहिश ज़रूर पूरी करो पर जीना…
साइकिल - आलेख - पारो शैवलिनी
साइकिल चलाना व्यायाम करने और परिवहन पर पैसे बचाने का एक शानदार तरीक़ा है। साइकिल चलाना बच्चों और वयस्कों समेत महिलाओं के लिए भी उपयोगी …
आया महीना जून का - मनहरण घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी
आया महीना जून का, सूरज उगले आग। चिलचिलाती धूप में, बाहर ना जाइए। गरम तवे सी धरती, बरस रहे अंगारे। आग के गोले सी लूएँ, ख़ुद को बचा…
अब साज सँवार नहीं करना - गीत - शुचि गुप्ता
लख खंडित दर्पण रूप कहे, अब साज सँवार नहीं करना। विधिना जब घोर कलंक दिया, तम मावस रात नहीं टरना। पकड़ा जब भी निज स्वप्न कभी, मम भाग सदा…
इश्क़ और अश्क - कविता - बृज उमराव
इश्क़ के अश्क जो आँखों में, भाव न इनका पढ़ पाया। असमंजस में दो राहे पर, राह न अपनी चुन पाया।। आँखों से लुढ़क कर गालों में, इक स्याह लकी…
नवभोर - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवभोर नमन मंगलमय जन, खिले चमन नव प्रगति सुमन। पथ नवल सोच नवशोध सुयश, नवयुवा देश हित भक्ति किरण। कर्म कुशल युवा जन मन भारत, सच्चरि…
चंचल कलियाँ - कविता - संगीता राजपूत 'श्यामा'
ऋतु सावन की झोंके खाए कजरी मल्हार मे ठनी झूले झूल उठे डाली पे कली मकरंद संग सनी। नाच रहे हैं पत्ते देखो मेघ द्वार बरसे बूँदे घटा म…