कच्ची मिट्टी - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'

कच्ची मिट्टी सी मैं,
सबके रंग में रंग जाऊँ,
ढाल ख़ुद को...!
अपनो की ख़ुशियों में,
मन ही मन सुकून पाऊँ,
हर रिश्ते के साँचे में, 
ढाल ख़ुद को...!
सबके मन का करती जाऊँ,
ऐसा कर मैं हर रिश्ते को,
पक्का करती जाऊँ,
ख़ुद का जीवन न्योछावर कर,
किसी ओर के नाम से ही..., 
मैं पहचानी जाऊँ,
कभी किसी की बिटिया,
कभी गृहलक्ष्मी...कहलाऊँ,
कभी माँ बन बच्चों में,
अपना अस्तित्व...,
ढूँढ़ती जाऊँ,
इस घर को अपना,
और बाबुल का आँगन,
पराया करती जाऊँ,
मैं रमणी कैसे...!
सुनो सबकी..., 
करो अपने मन की,
मैं समझ पाऊँ,
जब कफ़न भी अपना,
मैं अपने मायके से पाऊँ,

कुमुद शर्मा 'काशवी' - गुवाहाटी (असम)

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