बेटी - लघुकथा - डॉ॰ यासमीन मूमल 'यास्मीं'

(ऑल इंडिया अस्पताल का कैंसर वार्ड)
याशी - माँ अब कैसी तबियत है?
माँ - घबराओं नहीं बेटा बेहतर हूँ।
याशी - मगर...
माँ मुस्काते हुए पगली बीमारियों की रिपोर्ट्स पर ध्यान न दिया करो। मशीनों से तैयार की जाती हैं ये, कुछ भी लिखा आ सकता है।
याशी - (माँ की आँखों में आँखें डालकर) अच्छा जी?
माँ - सकपकाते हुए उँगली के इशारे से चुप एकदम शान्त रहो। अपनी छोटी बहन को मत बताना रिपोर्ट में लिवर कैंसर की लास्ट स्टेज आई है; उसकी पढ़ाई ख़राब होगी और टेंशन लेकर डिप्रेशन बढ़ेगा।
याशी - माँ आपमें इतनी हिम्मत कैसे है?
माँ - बेटा जीवन मे हज़ार मोड़ दुःख, दर्द आते हैं। हर परिस्थिति को झेलने के लिये तैयार रहना चाहिए। 
माँ - वादा करो याशी सदा हिम्मत रखोगी और मुस्कुराकर जियोगी हर उलझन का सामना करते हुए।
याशी - (नम आँखों से माँ को देखते हुए) जी मैं वादा करती हूँ, ख़ुश रहने की हर संभव कोशिश करती रहूँगी अंतिम साँस तक।
माँ - शरीर का क्या ये मिट्टी है, मिट्टी में एक न एक दिन तो इसे मिल ही जाना होता है।
याशी - जी
माँ - मेरे सिखाए अच्छे काम हमेशा तुम्हें आगे पहुँचाएँगे और मैं आसमान से तुम्हें देखकर दुआएँ दिया करूँगी मुस्कुराती हुई मेरी बच्ची।
याशी - माँ मेरे गले लग जाओ।
माँ - पगली लगो गले कसकर मोटी हो गई हो।
याशी - अच्छा!
नम नैनों से ठहाके के साथ हँसते हुए आँसू ढुलक पड़े चारों गालों पर।

डॉ॰ यासमीन मूमल 'यास्मीं' - मेरठ (उत्तर प्रदेश)

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