संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
बढ़े जा रहे हैं - ग़ज़ल - संजय राजभर 'समित'
शुक्रवार, जून 17, 2022
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 122 122
बढ़े जा रहे हैं,
चले जा रहे हैं।
सद गुरू कृपा बिन,
फँसें जा रहे हैं।
चकाचौंध माया,
ठगे जा रहे हैं।
दिखावे की रिश्तें,
बँटे जा रहे हैं।
खुलेपन में नंगे,
हुए जा रहे हैं।
भला क्या बुरा क्या,
डटे जा रहे हैं।
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