वन/विपिन में एक वनराज था भूखा,
देख रहा था इधर उधर।
थोड़ा सा आगे चलते ही,
दिख पड़ा नवजात गौ-शावक युगल।
भूख से खूँखार गर्जन करते,
जैसे ही उन पर टूटने वाला था।
करुण-क्रंदन गौ की सुनकर हाफते बूढ़ा शशक आया था ।
विनती सुन वृद्ध शशक की,
वनराज का हृदय पसीज गया।
छोड़ नवजात गौ बछड़े को,
शशक वनराज का ग्रास हुआ।
प्रकृति भी हर्षित स्वच्छंद-स्वर में
त्याग का राग गाती है।
यहाँ-वहाँ, जहाँ देखोगे
सब त्याग-उपकार की ही ख्याति है।
त्यागों से ही नारी प्यारी है,
घर-संसार सँवारी है।
वह त्याग की मूर्तरूप-मयी
देवों सी पूज्य हमारी है।
सूरज, चंदा, पेड़, सरोवर
त्याग-तपस्या की शिक्षा देते हैं।
त्याग-सभ्यता की सुसंस्कृति
इतिहास सृजन कर देते हैं।
आओ हम भी कुछ त्याग करें,
दुर्गुण का प्रतिकार करें,
आलस, मोह, लोभ, ईर्ष्या को
त्याग सबसे सुव्यवहार करें।
भ्रष्टमार्ग को त्यागोगें तो,
सदाचार उद्धार करेगा।
नियम-नियति विश्व पटल पर,
शांति का जीर्णोद्धार करेगा।
आओ हम भी कुछ त्याग करें...
आओ हम भी कुछ त्याग करें...
ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्यप्रदेश)