चंचल कलियाँ - कविता - संगीता राजपूत 'श्यामा'

ऋतु सावन की झोंके खाए
कजरी मल्हार मे ठनी 
झूले झूल उठे डाली पे 
कली मकरंद संग सनी।

नाच रहे हैं पत्ते देखो 
मेघ द्वार बरसे बूँदे 
घटा मल्हार गाके भागे
उड़ पीहू डाली कूदे 
सूखी धरती अब हरियायी
हर्षित हो के तीज मनी।

मध्यम स्वर से गाता अंबर 
रूप छल भर पक्षी दौड़े
सरसी में है भरी बदरिया 
ताली दे डोले भौंरे 
चंचल कलिया तितली बहती 
आकर्षण का केंद्र बनी।

साथ सखी चल कजरी खेले 
सतरंगी लगा महावर 
इंद्रधनुष ने खोली बाहे 
घुमड़ चले बह के सरोवर 
मुट्ठी में सिमटाकर सावन 
ख़ुशी उगी हैं फूल ठनी।

संगीता राजपूत 'श्यामा' - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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