कुछ उठाते कुछ गिराते
कुछ चुभते कुछ सहलाते।
कितनी तरह के होते हैं ये
यात्रा पथ के पत्थर हमारे।।
कुछ प्रेरणा देते हैं ऊँचा उठने की
कुछ डराते हैं अनन्त गहराइयों से।
कुछ कहते हैं तराश लो ख़ुद को।
दुनिया में महान बनने के लिए।।
कुछ पड़े रहते हैं अविचल स्थिर
नदी की अनन्त धाराओं में।
जल के असीमित वेग से लड़ते
हौसलो की नई परिभाषा गढ़ते।।
कितना कुछ कह देते हैं ये
निर्जीव होते हुए भी मूक भाषा में।
हर पल नए सन्देश प्रसारित करते।
हमेशा मिलते हैं पथ के पत्थर।।
नृपेंद्र शर्मा 'सागर' - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)