संदेश
नवरात्रि महापर्व - कुण्डलिया छंद - शमा परवीन
मनभावन पावन लगा, नवरात्रि महा पर्व। करते आएँ हैं सदा, हम सब इस पर गर्व॥ हम सब इस पर गर्व, चेतना नई जगाएँ। रख कर नौ उपवास, मातु को शीश …
आदिशक्ति के नौ रूप - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
आदिशक्ति के नौ रूपों का, इस नवरात्रि में स्वागत है। माँ दुर्गा की पूजा को आतुर, सारा जहाँ और भारत है। नारी शक्ति को संबल देकर माँ ने म…
नव संवत - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
नव संवत की बेला आई, कलियों ने ओढ़ी तरुणाई। श्वासों की शाखों पर देखो, सुंदर पुष्प गुलाब खिले हैं। मादकता मधुबन में फैली, नयनों में महताब…
नमन तुझे माँ अम्बिका - कविता - राघवेंद्र सिंह
हिन्दू वर्ष का प्रथम, वह चैत्र मास आ गया। है आ गई बसंत ऋतु, कुसुम पलाश आ गया। बुला रहे नयन तुझे, तू आ मेरी माँ चंद्रिका। नमन तुझे मा…
जब मैं नहीं रहूँगा - कविता - प्रवीन 'पथिक'
जब मैं नहीं रहूँगा, रहेंगी एक अज्ञात चिंता। जो तुम्हे सताएगी; बिसरे पलों को याद दिलाएँगी; पर, वो खो जायेंगे किसी गहन अँधेरे में। यद्यप…
हार जीत - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हार हो या जीत ये है हमारी प्रीत, जैसा करें विचार वैसे ही व्यवहार। हार सिर्फ़ हार नहीं है अपना विचार भी है, जीत कोई अनूठी चीज़ नहीं महज़ आ…
मैंने जीना सीख लिया है - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
घर में रहा अकेले तो भी, मैंने जीना सीख लिया है। जी घबडा़या गीता पढ़ ली, सीखी मैंने जीवन धारा। फिर चाहा तो गीत बनाया, रहा गुनगुना यही स…
वो चुपके से बोल गए - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेल फ़अल तक़ती : 22 22 21 12 वो चुपके से बोल गए, झट मिसरी सी घोल गए। हमने जब भी सच पूछा, दे बातों में झोल गए। अबत…
भक्त के वश में हैं भगवान - कविता - गायत्री शर्मा गुँजन
माता शबरी के अटूट प्रेम और निश्छल भक्ति की अनूठी मिसाल! एक छोटा सा प्रयास किया है इस काव्य के माध्यम से यह बताने का कि भक्ति गर्व और उ…
एक मुद्दत हो गई दीदार बिन - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 एक मुद्दत हो गई दीदार बिन, दिल कहीं लगता नहीं है यार बिन। दिल लगाने को सहारा …
आदमियत होने की शर्त लिखता हूँ - कविता - विनय विश्वा
मैं कविता लिखता हूँ इसलिए लोग कहते हैं कवि हूँ पर, मैं एक आदमी हूँ आदमियत होने की शर्त लिखता हूँ जहाँ पर्त खोलने की कोशिशें होती हैं इ…
म्हारों राजस्थान - कविता - गणपत लाल उदय
यह रंग-रंगीलो है म्हारों राजस्थान, शूरवीरा को प्यारो यह राजस्थान। 33 ज़िला रो यह म्हारों राजस्थान, क्षेत्रफल में बड़ों म्हारों राजस्थ…
नव संवत की शुभकामनाएँ - कविता - आर्तिका श्रीवास्तव
चैत्र मास का प्रथम चंद्रोदय आओ मनाए नव वर्ष आज, मंगल गाए ख़ुशी मनाएँ सनातनी नव वर्ष है आज। ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना इसी दिन से की …
गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना - ग़ज़ल - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
अरकान : फ़आल फ़ाइलातुन फ़ाईलुन फ़ेलुन तक़ती : 121 2122 222 22 गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना, मगर हाँ जब करो इसकी अज़्मत करना। ये इश्क़ प्यार…
सेना का एक सिपाही हूँ - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
कभी गर्म रेत पर चलता हूँ, हिम की गोदी में पलता हूँ। भूचाल, बाढ़ या हो आँधी, कर्तव्य से नहीं विचलता हूँ। हथियार लिए मुस्तैद रहूँ, सीमा प…
महकती बहारें - कविता - रमाकांत सोनी
फ़िज़ाओं में ख़ुशबू फैली खिल गए चमन सारे, झूम-झूम लगे नाचने लो आई महकती बहारें। वादियों में रौनक आई लबों पे मुस्कानें छाई, प्रीत भरे तरा…
मुझे बहू ना मान लेना - कविता - समीर उपाध्याय
मैं बेटी हूँ... बाबुल की छत्रछाया छोड़कर आई हूँ, मां का आँचल छोड़कर आई हूँ, भैया के हाथों की कलाई में प्यार की निशानी छोड़कर आई हूँ, म…
गीत सजाने आया हूँ - कविता - राघवेंद्र सिंह
मैं कवियों की स्मृतियों का, गीत सजाने आया हूँ। काव्य के इस सुंदर उपवन में, दीप जलाने आया हूँ। मैं अदना सा एक बालक हूँ, अभी अभी निकली त…
बेटियाँ एक पीढ़ी बनाती - कविता - विनय विश्वा
कैमूर की बेटी रातरानी (इंटर परीक्षा में जिला टॉपर) के लिए साथ ही उन तमाम बेटियों को समर्पित है यह कविता जो अपने लक्ष्य को समर्पित होकर…
जल जीवन है इसे बचाएँ - आलेख - डॉ॰ शंकरलाल शास्त्री
अप्सु भेषजम्। जल औषधि है। जल का ही दूसरा नाम जीवन भी है। समूचे विश्व में प्रतिवर्ष विश्व जल दिवस मनाया जाता है। चारों और बड़े-बड़े विज…
क्या लिखूँ? - कविता - अमित श्रीवास्तव
शोना बाबू के थाना न थाने पर चिंतित जवानी लिखूँ? या भूखें पेट मेहनत कर आईएएस बनते युवाओं की रवानी लिखूँ? ज़रूरतमंदों के आँखों का पानी लि…
बातें थीं जिसकी फूल वो ख़ंजर सा हो गया - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन तक़ती : 221 2121 1221 212 बातें थीं जिसकी फूल वो ख़ंजर सा हो गया, मासूम था वो आजकल पत्थर सा हो ग…
माँ का पल्लू - कविता - अमिता राज
माँ के पल्लू में मिलेंगे दाग़ अपने लाल के मुँह से जूठन पोछने के, माँ के पल्लू में मिलेंगे लाल के आँखों से पोछे हुए नेत्रजल के निशान। मा…
कुल्हाड़ी - कविता - आशीष कुमार
तीखे नैन नक्श उसके जैसे तीखी कटारी रुक-रुक कर वार करती तीव्र प्रचंड भारी असह्य वेदना सह रहा विशाल वृक्ष काट रही है नन्हीं सी कुल्हाड़ी…
सशंकित-चित्त - कविता - प्रवीन 'पथिक'
चिर परिचित दो आँखें, मुझे अपनी ओर बुलाती हैं। पास जाता तो, छुप जाती अँधेरी दीवारों के बीच। एक आहट, जिन्हे रोज़ महसूस करता हूँ। रात्रि क…