नमन तुझे माँ अम्बिका - कविता - राघवेंद्र सिंह

हिन्दू वर्ष का प्रथम, 
वह चैत्र मास आ गया।
है आ गई बसंत ऋतु, 
कुसुम पलाश आ गया।

बुला रहे नयन तुझे,
तू आ मेरी माँ चंद्रिका।
नमन तुझे माँ अम्बिका,
नमन तुझे माँ अम्बिका।

सजाई मात चौकी है,
सजाया एक है कलश।
जलाया दीप एक नवल,
मैं लाया हूँ माँ फल सरस।

सजा है द्वार पुष्प से,
तू आ मेरी माँ चंद्रिका।
नमन तुझे माँ अम्बिका,
नमन तुझे माँ अम्बिका।

खड्ग खप्पर तू धारिणी,
सकल जगत की तारिणी।
तू लोक की प्रकाशिनी,
तू दुःख सकल निवारिणी।

पुकारती सकल धरा,
तू आ मेरी माँ चंद्रिका।
नमन तुझे माँ अम्बिका,
नमन तुझे माँ अम्बिका।

तू महिषासुर है मर्दिनी,
तू चण्ड मुण्ड नाशिनी।
तू धारिणी है अष्ठ भुज,
तू पर्वतों की वासिनि।

तू रूप नव मुझे दिखा,
तू आ मेरी माँ चंद्रिका।
नमन तुझे माँ अम्बिका,
नमन तुझे माँ अम्बिका।

तू भरती झोली खालियाँ,
तू प्रेम की है दायिनी।
तू ज्वाल रूप कालिका,
तू माँ है सिंह वाहिनी।

लिए खड़ा माँ आरती,
तू आ मेरी माँ चंद्रिका।
नमन तुझे माँ अम्बिका,
नमन तुझे माँ अम्बिका।

राघवेंद्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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