गीत सजाने आया हूँ - कविता - राघवेंद्र सिंह

मैं कवियों की स्मृतियों का,
गीत सजाने आया हूँ।
काव्य के इस सुंदर उपवन में,
दीप जलाने आया हूँ।

मैं अदना सा एक बालक हूँ,
अभी अभी निकली तरुणाई।
शब्दों के प्रस्फुटित मेघ से,
मैंने भी एक आस लगाई।

रज धूलि पुरोधाओं की मैं,
निज भाल लगाने आया हूँ।
मैं कवियों की स्मृतियों का,
गीत सजाने आया हूँ।

रसलोलुप नायक हूँ भ्रमर,
मैं सूक्ष्म जीव खद्योत भी हूँ।
हूँ आशा और निराशा भी,
किन्तु नव दीप ज्योत भी हूँ।

खिलती कलियों के अंतर्मन,
मैं आस जगाने आया हूँ।
मैं कवियों की स्मृतियों का,
गीत सजाने आया हूँ।

हे भाव शिल्प के ज्ञाताओं,
रख लो भी मुझे क़तारों में।
हूँ नन्हा सा एक पुष्प मात्र,
शामिल कर लो उर हारों में।

अपनी काव्य सुगंध से ही,
उपवन महकाने आया हूँ।
मैं कवियों की स्मृतियों का,
गीत सजाने आया हूँ।

राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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