नव संवत की बेला आई,
कलियों ने ओढ़ी तरुणाई।
श्वासों की शाखों पर देखो,
सुंदर पुष्प गुलाब खिले हैं।
मादकता मधुबन में फैली,
नयनों में महताब जले हैं।
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं छाई,
नव सम्वत की बेला आई।
कलियों ने ओढ़ी तरुणाई,
नव सम्वत की बेला आई।
ख़ुशबू घुली फ़िज़ाओं में है,
फ़सलें रँग रँगीली हैं।
मधुर मास है छलका छलका,
कलियाँ हुई नशीली हैं।
ग्रीष्म ऋतू की आहट लाई,
नव संवत की बेला आई।
कलियों ने ओढ़ी तरुणाई,
नव संवत की बेला आई।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)