भक्त के वश में हैं भगवान - कविता - गायत्री शर्मा गुँजन

माता शबरी के अटूट प्रेम और निश्छल भक्ति की अनूठी मिसाल!
एक छोटा सा प्रयास किया है इस काव्य के माध्यम से यह बताने का कि भक्ति गर्व और उत्कृष्टता नहीं प्रेम और झुकाव का रास्ता है जिसमें तनिक भी संशय हो तो प्राणी भवसागर से छूट नहीं पाता।

भक्ति का रूप ले अनुपम धरा पर आज है उतरी,
मतंग आश्रम में आश्रय ले रही है मात वह शबरी।
थी वह इस बात से अज्ञात एक दिन राम आएँगे,
है खोला भेद मुनिवर ने तुझे दर्शन दिखाएँगे।

बिछाना दिन प्रतिदिन पुष्प प्रतीक्षा राम की करना,
जलाकर आस का दीपक नयन पथ पर सदा रखना।
चले सुरलोक को गुरुवर बताकर भेद ये मुनिवर,
देह को त्याग कर निकले परम गोलोक को मुनिवर।

किया है दृढ़ भक्ति का प्रतीक्षा दीर्घकालिक की,
उम्र के अंत तक तकती रही वह राह मालिक की।
जब आएँगे श्री रघुवर यह जीवन धन्य जानूँगी,
चली जाऊँगी इस दुनिया से नवधा भक्ति मानूँगी।

वो शबरी आँख पथराई आस का पुष्प मुस्काया,
मतंग आश्रम के चारों ओर उजियारा ही है छाया।
योग के बल से बलवति था विहंगम दृश्य कुटिया का,
योग के तेज़ से रौशन समाधि दीप कुटिया का।

भीलनी ने पुष्प बेरों की है दिनचर्या कठिन पाली,
प्रातः प्रभु राम का स्मरण राममय भक्ति है डाली।
कहा शबरी को मंदबुद्धि वहाँ के ऋषि कुमारों ने,
अंततः भक्ति पागलपन की व्याख्या की है तारों ने।

राम आए पुष्प बिखरे शबरी के प्रेम हारों से,
पखारे पग प्रभु के आज उसने अश्रु धारों से।
भाव से हो विहल रघुवर आज तो प्रेम से हारे,
प्रेम कहते हैं इसको देख लो ओ मेरे अनुज प्यारे।

अंततः प्रभु को ऋषियों का तोड़ना गर्व भी था तब,
कहा पंपासरोवर जल है दूषित यहांँ चरण डालें सब।
प्रभु ने जब चरण डाले नहीं जल स्वच्छ हो पाया,
उन्हें भी गर्व था है वध किया तो परिणाम है आया।

चरण डाला ऋषि मुनियों ने बड़े ज्ञानी महाज्ञानी,
किंतु न स्वच्छ हो पाया स्वयं था प्रेम का पानी।
अंततः मात शबरी से कहा माँ तुम चरण डालो,
प्रेम की हो सरल गंगा जरा उद्धार कर डालो।

झिझक शब्दों में दिल मे राम रख चरण वहाँ डाले,
सरोवर स्वच्छ हो पाया गर्व ऋषियों के तोड़ डाले।
कहा त्यागो सभी अभिमान का झूठा दुशाला तुम,
हृदय को स्वच्छ कर अपने जपो प्रभु नाम माला तुम।

गायत्री शर्मा गुँजन - दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos