शोना बाबू के थाना न थाने पर चिंतित जवानी लिखूँ?
या भूखें पेट मेहनत कर आईएएस बनते युवाओं की रवानी लिखूँ?
ज़रूरतमंदों के आँखों का पानी लिखूँ?
या बेरोज़गारों की मजबूरी की कहानी लिखूँ?
मासूम हाथों में खनकते सिक्को की गिनती लिखूँ?
या बच्चों के भविष्य में चिंतित माताओं की विनती लिखूँ?
कलमकारों की शान्ति को दुनिया का क़हर लिखूँ?
या बॉलीवुड में फैलती अश्लीलता को धीमा ज़हर लिखूँ?
युवा नेताओं की सेल्फ़ी में फ़ुर्सत के वो पल लिखूँ?
या शोषण करवाते इन युवाओं का कल लिखूँ?
बाबा की चाय वो दीवानी लिखूँ?
या दादी के मालपुओं पर कहानी लिखूँ?
बता दो आख़िर क्या लिखूँ...
डिप्रेशन में जाते नन्हे मुन्नों की 'मन की बात' लिखूँ?
या सिगरेट के धुएँ में सुलगते युवाओं के 'तन की बात' लिखूँ?
लीवर जलाते फास्ट फूड के ठेलो को ज़रूरी लिखूँ?
या ठेला लगाने को इन ग़रीबों की मजबूरी लिखूँ?
मोबाइल के नशे में बच्चों का भविष्य असुरक्षित लिखूँ?
या मोबाइल में ही शैक्षिक भविष्य सुरक्षित लिखूँ?
बलात्कार सहती उन नन्ही बेटियों का दर्द लिखूँ
या... क्या इन हैवानों को भी काग़ज़ों में मर्द लिखूँ?
दुपट्टे में रहती बहनों की सोच को पुरानी लिखूँ?
या रील्स बनाते लाल पीलों को अपडेटेड जवानी लिखूँ?
देश को बाहरियों से सुरक्षा देती उस वर्दी को लिखूँ?
या देश के अंदर पनपे आतंकियों की बे दर्दी को लिखूँ?
तंबाकू प्रचार से करोड़ो कमाते उन शक्ल वालो को लिखूँ?
या कैंसर में भी जान बचाते इन अक्ल वालो को लिखूँ?
समाजसेवी नेताओं की कोठियों की ऊँचाई लिखूँ?
या महँगे डीजल से ग़रीब किसानों के खेतों की सिंचाई लिखूँ?
मन हो रहा, लेकिन समझ ही नही आ रहा की आख़िर
लिखूँ तो
क्या लिखूँ?
अमित श्रीवास्तव - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)