प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
बातें थीं जिसकी फूल वो ख़ंजर सा हो गया - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव
शुक्रवार, मार्च 25, 2022
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़ती : 221 2121 1221 212
बातें थीं जिसकी फूल वो ख़ंजर सा हो गया,
मासूम था वो आजकल पत्थर सा हो गया।
सारी उमर हमारे लिए धूप में तपा,
वो अपनी बे-ख़्याली में पतझर सा हो गया।
आँगन में अपने, अपनों से लूटा गया हूँ मैं,
थे बदनसीब लम्हे कि बेघर सा हो गया।
ये ज़िन्दगी सिफ़र थी जो मिलता मुझे न वो,
सच बोलूँ वो मेरे लिए रहबर सा हो गया।
इंसानियत के फूल महकते नहीं हैं अब,
इंसान का दिल आजकल बंजर सा हो गया।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर