बातें थीं जिसकी फूल वो ख़ंजर सा हो गया - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव

अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़ती : 221  2121  1221  212

बातें थीं जिसकी फूल वो ख़ंजर सा हो गया,
मासूम था वो आजकल पत्थर सा हो गया।

सारी उमर हमारे लिए धूप में तपा,
वो अपनी बे-ख़्याली में पतझर सा हो गया।

आँगन में अपने, अपनों से लूटा गया हूँ मैं,
थे बदनसीब लम्हे कि बेघर सा हो गया।

ये ज़िन्दगी सिफ़र थी जो मिलता मुझे न वो,
सच बोलूँ वो मेरे लिए रहबर सा हो गया।

इंसानियत के फूल महकते नहीं हैं अब,
इंसान का दिल आजकल बंजर सा हो गया।

प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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