संदेश
मकर संक्रांति - कविता - रतन कुमार अगरवाला
आया मकर संक्रांति का पावन उत्सव, सूर्यदेव हुए उत्तरायन, करते सूर्य की अर्चना इस दिन, और माँ गंगा में करते स्नान। करते हैं सूर्य देव को…
पतंगे - कविता - रमाकांत सोनी
नील गगन में उड़े पतंगे लहराती बलखाती सी, रंग-बिरंगी सुंदर-सुंदर अठखेलियाँ दिखाती सी। वो डोर से बँधी हुई आसमान छू पाती है, हर्ष उमंग …
देखने में इस क़दर ख़ुश शक्ल ये तूफ़ान है - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 2122 212 देखने में इस क़दर ख़ुश शक्ल ये तूफ़ान है, नफ़रतों के फूल लेकर झू…
बता रहा है धुआँ - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
आदमी अंदर और बाहर उड़ा रहा है धुआँ, तिल-तिल फेफड़ों को सड़ा रहा है धुआँ। ऊपर जाना और ले जाना मेरी फ़ितरत है, धूम्रपान करने वालों को बता रह…
अंतःपीड़ा - कविता - प्रवीन 'पथिक'
मैं जानता हूँ; तेरी असहमति कहीं न कहीं, आँधी के पश्चात होने वाली रिमझिम बारिश से है। तेरी पलकों का झुकना, दोपहर के सपने जैसे हैं। तेर…
स्वामी विवेकानंद जी - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
महावीर पुरुषार्थ सबल पथ, मति विवेक रथ यायावर था। चिन्तक ज्ञानी वेदान्तक सच, शक्ति उपासक महा प्रखर था। नवतरंग नवयौवन सरिता, अन्वेष…
स्वामी विवेकानंद - कविता - सीमा वर्णिका
धार्मिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का हुआ था ह्वास, चारित्रिक व नैतिक सिद्धांतों का बना था परिहास। सनातन धर्म-मूल्यों को भूला था सामाजिक प…
स्वामी विवेकानन्द - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
स्वामी विवेकानन्द जी थे, युग पुरुष मानव महान। अल्पायु में ही पा लिया था, अनुपम अलौकिक दिव्य ज्ञान। राष्ट्र का जग में बढ़ाया, मान शान आन…
मताधिकार - कविता - बृज उमराव
जागरूक होवे जन मानस, मताधिकार करे आग़ाज़। क़ानूनी अधिकार आपका, ख़ुद से ही करिए शुरुआत।। किसी की सोंच न हावी होवे, सोंच विचार करें मतदान। भ…
मन विजय - कविता - मयंक द्विवेदी
सीमाएँ क्या होती है? असीमित बन बहना होगा। अनन्त है तेरी परिभाषाएँ, प्रबल है तेरी अभिलाषाएँ, कदम सुदृढता से रखना होगा। मुश्किले कमज़ोरिय…
लोहड़ी - लेख - सोनल ओमर
लोहड़ी पंजाबियों का लोकप्रिय लोक महोत्सव है जो पूर्व उत्तर भारत और मुख्य रूप से पंजाब में सिखों और हिंदुओं द्वारा हर साल 13 जनवरी को म…
पितृसत्तात्मक समाज और स्त्री जीवन - कविता - नीलम गुप्ता
एक स्त्री की ज़िंदगी को, क्या बनाकर रख दिया है? इन पितृसत्तात्मक समाज के लोगों ने। पीहर में पली बढ़ी तो गुड़िया देकर उसे, उसके अस्तित्व…
मैंने तुम पर गीत लिखा है - गीत - सौरभ तिवारी
शब्दों की कलियाँ चुन-चुन कर मनवीणा संगीत लिखा है, मैंने तुम पर गीत लिखा है। शरद चंद सी स्वच्छ चाँदनी और मेघों की आहट है, शबनम के मोती …
बचपन और गाँव - कविता - विजय कृष्ण
बचपन में गाँव हमेशा दस किलोमीटर दूर लगता था, न कम न ज़्यादा। एक तो बुद्धि दस वर्ष से ज़्यादा न थी और दूसरे दस का नोट बहुत बड़ा लगता था। …
सोचता हूँ - कविता - अमृत 'शिवोहम्'
उन नफ़रतों के समुंदर को उठाकर किसी सच्चे प्रेम की आग में फेंक दूँ, सोचता हूँ उन पानी से भरे बादलों को पकड़कर किसी रेगिस्तान में फेंक दू…
करुणा - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता'
जब देखूँ उसकी दारुण दशा, हृदय में करुणा भर आती है। हमदर्दी वश रहा नहीं जाता, सदा उसकी फ़िक्र सताती है। फटी बंडी टूटी चप्पलों में, सर्दी…
खेले दिनमान - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
भोर हुई प्राची की गोद में खेले दिनमान! दिन उदय होते ही अँधेरा दूर हुआ! रात में नीड़ों में आराम भरपूर हुआ! दिन चढ़े सूरज ने कर दिया ध…
वो ज़माना याद है - गीत - रमाकांत सोनी
वो हंसी पल वो तराना सुहाना याद है, हम मिले थे आपसे वो ज़माना याद है। खिल उठा था चमन चहक उठी वादियाँ सभी, ख़ुशियाँ बरस पड़ी महक उठी बगिया…
आने वाला पल - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
आने वाला पल तो आकर ही रहेगा, जैसे जाने वाला पल भी भला कब ठहरा है? क्योंकि आने वाला पल अगले पल के साथ ही बीता हुआ हो जाएगा। जो पल बीत …
मैं भला नहीं - कविता - अमरेश सिंह भदौरिया
साँचे में तुम्हारे ढला नहीं। बस इसिलए मैं भला नहीं।। वामन जैसा शीश पर, अपने अगर मैं पाप लेता। दो डगों में ये तुम्हारी, सृष्टि पूरी नाप…
वो पगली - कविता - मोहित बाजपेयी
जब चाँद किसी का चेहरा बन मेरी नींद उड़ाने लगता है, नाजुक झोंका पुरवाई का जब गीत सुनाने लगता है। जब बिना बात के चेहरे पर अल्हड़ मुस्कान …
जगत जननी माँ - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ओ माँ! जगत जननी माँ, अब मेरा कल्यान कर दे। हम तो हैं इक शिशु तुम्हारे, माँ हृदय में ज्ञान भर दे। 2 हे क्षमामयि! हे दयामयि! अब मेरा उद्…
जन्म सफल हो जाएगा - कविता - अंकुर सिंह
मिला मानव जीवन सबको, नेक कर्म में सभी लगाएँ। त्याग मोह माया, द्वेष भाव, प्रभु भक्ति में रम जाएँ।। मंदिर मस्जिद या गुरुद्वारा, निज धर्म…
शीत ऋतु का आगमन - कविता - आशीष कुमार
घिरा कोहरा घनघोर गिरी शबनमी ओस की बुँदे, बदन में होने लगी अविरत ठिठुरन। ओझल हुई आँखों से लालिमा सूर्य की, दुपहरी तक भी दुर्लभ हो रही प…
चाँद - कविता - डॉ॰ राजेश पुरोहित
चुपके-चुपके शशि किरण ने आँगन ने डेरा डाला, सपनों के ताने-बाने को देखो कैसे बुन डाला। चंचल चित में भाव हिलोरें चाँद ढेरों ले आया, अरमान…