शीत ऋतु का आगमन - कविता - आशीष कुमार

घिरा कोहरा घनघोर
गिरी शबनमी ओस की बुँदे,
बदन में होने लगी
अविरत ठिठुरन।

ओझल हुई आँखों से
लालिमा सूर्य की,
दुपहरी तक भी दुर्लभ
हो रही प्रथम किरण।

इठलाती बलखाती
बर्फ़ के फाहे बरसाती,
शीत ऋतु का हुआ
शनैः शनैः आगमन।

रजाई का होने लगा इंतजाम
गर्म कपड़ों से लिपटे बदन,
धधकने लगी लकड़ियाँ
अलाव तक खींचे जाते जन-जन।

होने लगी रातें लंबी
क़हर बरपाने लगा पवन,
दो घड़ी में होने लगा है
ढलती शाम से मिलन।

इठलाती बलखाती
बर्फ़ के फाहे बरसाती,
शीत ऋतु का हुआ
शनैः शनैः आगमन।

आशीष कुमार - रोहतास (बिहार)

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