करुणा - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता'

जब देखूँ उसकी दारुण दशा,
हृदय में करुणा भर आती है।
हमदर्दी वश रहा नहीं जाता,
सदा उसकी फ़िक्र सताती है।

फटी बंडी टूटी चप्पलों में,
सर्दी गरमी सब सहता है।
मन मौसकर रहता सदा,
कुछ ना किसी को कहता है।
जानें क्यों आँखें कतराती है,
जब देखूँ उसकी दारुण दशा ...

दो वक्त सादा खाकर भी,
स्वाभिमान से वह जीता है।
छल-कपट से दूर रहकर भी,
जीवन ना उसका रीता है।
यह देख दीनता भी शरमाती है,
जब देखूँ उसकी दारुण दशा ...

राष्ट्र धर्म की बातें करते,
सब झूठी आहें भरते है।
है फ़िक्रमंद इनका भी कोई,
तो फुटपाथ पर क्यों मरते है।
देख दीन दशा आँखें पथराती है,
जब देखूँ उसकी दारुण दशा ...

महेंद्र सिंह कटारिया 'विजेता' - गुहाला, सीकर (राजस्थान)

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