चाँद - कविता - डॉ॰ राजेश पुरोहित

चुपके-चुपके शशि किरण ने
आँगन ने डेरा डाला,
सपनों के ताने-बाने को
देखो कैसे बुन डाला।

चंचल चित में भाव हिलोरें
चाँद ढेरों ले आया,
अरमानों की खिली कली है
मन का उपवन महकाया।

प्रेम का प्रतिबिंव बनाने
ह्रदय द्रवित फिर हो आया,
दो तन के परिणय सूत्र में
बंधने का मौसम आया।

डॉ॰ राजेश पुरोहित - भवानीमंडी, झालावाड़ (राजस्थान)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos