मयंक द्विवेदी - गलियाकोट, डुंगरपुर (राजस्थान)
मन विजय - कविता - मयंक द्विवेदी
बुधवार, जनवरी 12, 2022
सीमाएँ क्या होती है?
असीमित बन बहना होगा।
अनन्त है तेरी परिभाषाएँ,
प्रबल है तेरी अभिलाषाएँ,
कदम सुदृढता से रखना होगा।
मुश्किले कमज़ोरियाँ तेरी नहीं पहचान,
घबरा जाए मुश्किले भी हौसले तेरे जान।
वो कौनसा कर्म है जो तुझसे ना हो पाए?
देख तुझे असंभव के भी पसीने छूट जाए।
वीरों सा लड़ना होगा, दो-दो हाथ करना होगा,
सीने में भर साहस, मुश्किलों से लड़ना होगा।
ऐसी क्या उत्कंठाएँ जो तेरी पुरी ना हो पाए?
ऐसी क्या सीमाएँ है जो तुझ से ना लंघ पाए?
जब भी आएँ तेरा नाम मन शत्रु भी थर्राएँ,
इन्द्रीय जीत ही नहीं तु मन विजय भी कर जाएँ।
सीमाएँ क्या होती है?
असीमित बन बहना होगा।
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