खेले दिनमान - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

भोर हुई
प्राची की गोद में
खेले दिनमान!

दिन उदय 
होते ही
अँधेरा दूर हुआ!
रात में
नीड़ों में
आराम भरपूर हुआ!

दिन चढ़े 
सूरज ने कर दिया
धूप का है दान!

किरनें हैं
प्राणी के
देह को दुलारतीं!
तालों के
दर्पण में
ख़ुद को निहारतीं!

ढलता हुआ सूरज
चला गया
छोड़कर जहान!

अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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