एक पल - आलेख - सुधीर श्रीवास्तव

समय का महत्व हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकता है। इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"। कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में अधिकांशतः हम लापरवाही में भ्रमवश भले ही एक पल को अधिक भाव नहीं देते, परंतु हम सबको कभी न कभी इस एक पल के प्रति अगंभीरता, लापरवाही अथवा अनजानी भूल की भारी क़ीमत चुकानी पड़ जाती है। बहुत बार मात्र एक पल के साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उसका विस्मरण असंभव सा होता है। वह अच्छा और ख़ुशी देने वाला भी हो सकता है और टीस देता रहता ग़म भी।

उदाहरण के लिए एक पल की देरी से ट्रेन छूट जाती है, एक पल की लापरवाही या मानवीय भूल बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, धावक विजयी हो जाता है और नहीं भी होता। एक पल में लिए निर्णय से जीवन की दशा और दिशा बदल जाता। बहुत बार एक पल के आगे या पीछे के निर्णय अविस्मरणीय ख़ुशी या ग़म तक दे जाते हैं। एक पल में ही दो अनजान शख़्स जीवन के अटूट बंधन में बंधकर पति-पत्नी बन जीवन भर निभाते ज़िंदगी गुजार देते हैं। एक पल में ही रिश्ते बनते भर ही नहीं हैं बहुत बार बिखर भी जाते है। सबसे अहम तो यह है कि जीवन की डोर भी तो एक मात्र पल में छूट जाती है और इस पल में जीवित प्राणी मृतक कहलाने लगता है।

आशय सिर्फ़ इतना है कि हर एक पल का अपना महत्व है और इस एक पल को नज़रअंदाज़ करना कभी भी किसी पर भी भारी पड़ सकता है। जिसका हमारे आपके जीवन में दूरगामी परिणाम भी अवश्यंभावी है। इसलिए एक पल की महत्ता को लापरवाही में नजरअंदाज करना हम सबकी भूल ही कहा जाएगा।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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