भगोड़ों का क्या है भरोसा,
आज इधर हैं तो कल हैं उधर।
देखा जिसे, कि मुर्गा है मोटा,
जमाया वहीं अपना घर।।
भगोड़ों का क्या है भरोसा,
आज पति संग, तो कल संग देवर।
देखा जहाँ मदिरा, मुर्गा परोसा,
वहीं डाला खटिया औ बिस्तर।।
भगोड़ों का क्या है भरोसा,
आज गाँव में, तो कल है शहर।
देखा जहाँ, इडली-डोसा,
वहीं सुबह, शाम, हर पहर।।
भगोड़ों का क्या है भरोसा,
आज हैं जेल में, कल हैं घर।
देखा जहाँ, उँचा पद, मोटा पैसा,
भागे वहीं त्याग घर-बर।।
भगोड़ों का क्या है भरोसा,
आज आवाद, कल है उजर।
जिसने कभी पाला-पोषा,
पिलाया उसी को फिर ज़हर।।
भगोड़ों का क्या है भरोसा,
उन्हें ना शरम, और न डर।
देखा जहाँ, माल मुफ़्त का परोसा,
थाल अपनी बढा दी उधर।।
भगोड़ों का क्या है भरोसा,
आज तोडी़ कमर, कल को मर्डर।
देखा जहाँ कोई मामा या मौसा,
वहीं जाएँगे वो ठहर।।
राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)