आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं - कविता - असीम चक्रवर्ती

मौसम है ख़ुशगवार 
आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं
प्रीत जगाते,
एक प्यार सजाते,
प्रेम की कोई पाती
फिर से पढ़ते हैं,
आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं।

हर दिल की दर्द नहीं,
वक़्त का पैग़ाम लिखते हैं।
पाँव के छाले नहीं,
हुनरमंद हाथ बनाते हैं।
माँ का आशीष 
बच्चों की मुस्कान
रिस्तो की मिठास लिखते हैं,
मौसम है ख़ुशगवार 
आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं।

फूलों की ख़ुशबू, 
बारिशों की फुहार,
चिड़ियों की चहचहाहट,
सूरज का लुका-छिपी,
प्रकृति का गीत गाते हैं,
मौसम है ख़ुशगवार 
आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं।

हम मिले ना मिले 
दिल से दिल मिलाते हैं,
बात दूर से ही सही 
हर बात करते हैं,
बाधा से क्या डरना 
कोई नया मुक़ाम ढूँढते हैं,
मौसम है ख़ुशगवार 
आओ कोई ग़ज़ल कहते हैं।

हर कोई कहता साल अच्छा नहीं,
विदेशी त्याग आत्मनिर्भर बनते हैं,
पुराने चाक पर नया दीप गढ़ते हैं।
अपनी ज़मीं में गेहूँ उगाते हैं,
काट पत्थर जो बनाई मंज़िलें,
नदियों का रास्ता क्यों रोकते हैं।
स्वार्थ में प्रकृति को हम छलते है,
मेहनत से बसाया जो शहर 
नफ़रत की दीवारें क्यूँ रचते हैं।
उनको भी ज़रा याद करो,
सीमा पर जो वीर लड़ते हैं,
हम चैन से सोते वो जंग लड़ते हैं।
नमन है उनको जो शहीद होकर,
भारत माँ का मस्तक ऊँचा रखते हैं।

मौसम है ख़ुशगवार 
कोई ग़ज़ल कहते हैं।।

असीम चक्रवर्ती - पूर्णिया (बिहार)

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