तुम्हारी नहीं पर जवानी लिखी है - ग़ज़ल - प्रशान्त "अरहत"

अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 122 122 122 122

तुम्हारी नहीं पर जवानी लिखी है।
इबारत किसी की पुरानी लिखी है।।

मेरी डायरी में नहीं शायरी तो,
तुम्हारी ही कोई निशानी लिखी है।

नयन की नदी जो कहीं खो गई है,
नहीं उसकी मैंने रवानी लिखी है।

मेरे सच को भी तुम नहीं मानते हो,
मगर उसकी झूठी कहानी लिखी है।

गुज़ारी नहीं जा सकी थी जो हमसे,
वही रात हमने सुहानी लिखी है।

प्रशान्त "अरहत" - शाहाबाद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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