मेरा किसान - कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

श्रम बिंदु बहता जाए,
काम वह तो करता जाए।
सर्दी, गर्मी या हो बरसात,
मेहनत करता है दिन-रात।
खेतों में वह अन्न उगाता,
अन्न तभी हमें मिल पाता।
कुछ कहते कृषक हमारा,
कुछ कहते खेतिहर प्यारा।
हरा भरा वह चमन करें,
उनको हरदम नमन करें।

डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव - जालौन (उत्तर प्रदेश)

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