वतन हमारा भारत प्यारा, हम सब जन हैं उसकी शान।
अपनी संस्कृति सबसे प्यारी, जो है भारत की पहचान।।
इस धरती का मान बढा़ए, राम कृष्ण जैसे भगवान।
शिवि दधीचि मन्धाता जैसे, हुए अवतरित यहाँ महान।।
गिरिनृप जिसका ताज बना है, पाँव पखारे सागर नीर।
वक्र नज़र से जो भी देखे, सेना उसको देती चीर।।
उपजाऊ है इसकी माटी, जो देती है सबको भोज।
इस मातृभूमि की रक्षा में, जान लगाते सैनिक रोज़।।
सबसे न्यारी भारत माता, कोना कोना बहुत अनूप।
पर्वत नदी पठार यहाँ के, देते माँ को अद्भुत रूप।।
भिन्न सभ्यता संस्कृति माने, लेकिन मिलकर सब हैं एक।
निज देश वतन की रक्षा में, रखें इरादे सब जन नेक।।
महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)