एक जवाब - कविता - राम कुमार निरंकारी

एक बात अगर मैं पूछूँ 
बोलो जवाब दोगे...?
कौन है वो जो हरे भरे पेड़ो के काटने का
अधिकार देता है?
कौन है वो जो इठलाती चलती नदी की 
चाल बदल देता है?
कौन है वो जो इन प्यारे कोमल पंछियों का 
घोंसला उजाड़ देता है?
कौन है वो जो सुंदर सुसज्जित प्रकृति को
उखाड़ देता है?
कौन है वो जो इस पावन धरा को अपने 
स्वार्थ से गंदा कर देता है?
कौन है वो जो नाचती गाती वसुंधरा को 
हर लेता है?
कौन है वो जो पहली माँ के आँचल को 
छिन्न भिन्न कर देता है?

कौन है वो, कौन है वो?

ना कौर है ना जाट है,
ना बांके, मलखान है।
ना जोसफ ना पीटर,
ना रहमान, पठान है। 
ना चींटी है ना हाथी है,
ना ही जंगल के साथी है।

कौन है वो, कौन है वो?

ओ प्यारी धरती माँ, पता नहीं कब तक 
तुझको ये दंश झेलना होगा? 
बोलना होगा हर बार ये तुमको 
जिसने ज़ख़्म दिए सीने में 
वो मेरा अपना होगा।

राम कुमार निरंकारी - सरसौल, अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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