रामायण कथा के रोचक अंश - वृत्तांत - ज्योति सिन्हा

सभी धर्मों में सबसे बड़ा धर्म है... "त्याग" नाम का धर्म!
आइए इस त्याग को रामायण की एक कथा में ढूँढते हैं, बहुत आसानी से मिल जाएगा, इसलिए मन लगाकर समझते हैं।

रामायण का एक छोटा सा वृतांत है,
माता कौशल्या जी को एक रात आधी रात को महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। 
उनकी नींद टूटी वहाँ चली गई और पूछा कौन है?

मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी।
माता कौशल्या जी को बहुत आश्चर्य हुआ। उनकी सबसे छोटी बहू चतुर्थ शत्रुघ्न की पत्नी को नीचे बुलाया।

श्रुतकीर्ति जी आईं, चरणों में प्रणाम किया।
माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी? क्या नींद नहीं आ रही?
शत्रुघ्न कहाँ है?
श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, रुँधे गले से बोली- माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए।

क्या... माता कौशल्या स्तब्ध हो गई।
आवाज़ लगाई, सेवक दौड़े। 
आधी रात ही पालकी तैयार हुई, शत्रुघ्न जी की खोज में 
माँ चली।
शत्रुघ्न जी मिले...
नगर दरवाज़े के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रह रहे थे, उसी दरवाज़े के भीतर एक पत्थर की सेज पर लेटे मिले।

माँ ने बालों को हाथ लगाया तो शत्रुघ्न जी ने आँखें खोलीं, 
माँ...
उठे, चरण वंदना कर बोले- माँ आपने क्यों कष्ट किया.. 
मुझे बुलवा लिया होता।
माँ ने कहा- शत्रुघ्न, यहाँ क्यों है?
शत्रुघ्न जी की रोते हुए बोले- माँ, भैया राम पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मण उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, तब क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं?

माता कौशल्या निरुत्तर रह गईं।

यह रामायण का "त्याग पाठ" आगे आगे देखिए जाने कितने घाट..
हर पल महसूस होगा जैसे कि यहाँ त्याग की ही प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं। 
चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं। "रामायण" जीवन को जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं।

भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी सीता माता ने भी वनवास का प्रण कर लिया।
वही बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! 
माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की, फिर जब पत्नी "उर्मिला" के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊँगा? क्या बोलूँगा उनसे?
यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुँचे तो देखा कि उर्मिला आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु श्रीराम की सेवा में वन को जाएँ, मैं आपको नहीं रोकूँगी। 
मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आए, इसलिए साथ जाने की ज़िद्द भी नहीं करूँगी।

यह हुई त्याग की दूसरी महान भावना।
लक्ष्मण जी संकोच में, कैसे समझाएँ, परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया।
पत्नी का धर्म भी यही है... पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे।
लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने कठोर तप किया।
वन में श्री राम व माता सीता की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोए नहीं, और यहाँ उर्मिला ने अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किए। सारी रात जाग जागकर दीपक जलाए रखी।

जब मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण जी को "शक्ति" लगी और हनुमान जी उनके लिए संजीवनी का पर्वत लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या के ऊपर से गुज़र रहे थे तो भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी की सारी बातें सुन, कि सीता जी को रावण हर ले गया, लक्ष्मण जी युद्ध में मूर्छित हो गए हैं। यह सुन माते कौशल्या कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी ना रखें। राम वन में ही रहें।
और त्याग की मूर्ति माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं... अभी शत्रुघ्न को भेज दूँगी...
मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिए ही तो जन्मे हैं।

माताओं का प्रेम त्याग देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। पर जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?

हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं... सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जाएगा। 

उर्मिला जी का उत्तर सुन कोई भी प्राणी उनकी वंदना किए बिना नहीं रह पाएगा। उर्मिला बोलीं- मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिए, क्योंकि आपके वहाँ पहुँचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता।
आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं।
जो प्रभु श्री राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। आज वे दोनों लीला कर रहे हैं।
मेरे पति जब से वन गए हैं, तबसे सोए नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं और जब भगवान् की गोद मिल गई तो थोड़ा विश्राम ज़्यादा हो गया। वे उठ जाएँगे।
और शक्ती मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो प्रभु श्री राम जी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके ख़ून की बूँद-बूँद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में ही सिर्फ़ राम हैं तो शक्ति राम जी को ही लगी। दर्द प्रभू राम को हो रहा है।
इसलिये हे हनुमान जी! आप निश्चिन्त होके जाएँ सूर्य उदित नहीं होगा।

रामायण के सभी पात्र त्याग और बलिदान की सत्यमूर्ति ही साबित हुए।
भगवान् राम तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण और बलिदान से ही आया।
जिस मनुष्य में प्रेम, त्याग, समर्पण की भावना हो उस मनुष्य में राम ही बसते है।

ज्योति सिन्हा - मुजफ्फरपुर (बिहार)

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