संदेश
मोहिनी सुरतिया - गीत - कुमारी गुड़िया गौतम
मोहिनी सुरतिया मन को है भाए, श्याम श्याम श्याम कटते जाए। मेरे दिल को ये बड़ा ही लुभाए॥ सबके मन को देखो कैसे हरसाए, सबके के घरों में द्…
जन्माष्टमी - कविता - गणेश भारद्वाज
जन्माष्टमी पावन दिन की, आओ मिलकर महता जाने। भगवन कृष्ण कर्मयोगी की, थोड़ी जीवन लीला जाने। जग में सत्य बचाने ख़ातिर, भगवन ने अवतार धरा ह…
कल तलक - मुक्तक - श्याम सुन्दर अग्रवाल
1 कल तलक तो हम भी होते थे सुघड़, क्या हुआ जो आज हैं ऊबड़-खाबड़। जो ख़ामियाँ हममें नज़र आतीं हैं तुम्हें, ये, वक्त ने की है हमारे साथ गड़…
श्री कृष्ण जन्माष्टमी: जीवन में गुणों को धारण करने का पर्व - लेख - आर॰ सी॰ यादव
सुख-समृद्धि की कामना करते हुए दैहिक, दैविक और भौतिक बाधाओं से मुक्ति के लिए मनुष्य का धर्मपरायण होना ज़रूरी है। ईश्वर की पूजा उपासना कर…
मेरे देश की मिट्टी - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
मेरे देश की मिट्टी नाज़ हमें, जन्नत धरती की शान सजें। परमवीर जाँबाज़ों शहीद, आज़ाद वतन मदमाते हैं। यह कर्मपथिक है ज्ञानवीर, विज्ञा…
आदमी ज़िंदा है - कविता - संजय राजभर 'समित'
मौन रहना– आमंत्रण है शोषण का द्योतक है कायरता का। कभी-कभी एक ग़ुस्सा है एक गंभीर ज्वालामुखी का फटने पर विनाश। कुछ भी हो दोनों में …
विरह - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
विरह के इस घड़ी में, रो-रो कर मैं जीता हूँ, याद तेरी जब आती है, अश्रु विष पीता हूँ। याद तेरी जब आती हैं, हृदय में पीड़ा होती है, …
हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
अब हाथ जोड़कर विनती है, हे! कृष्ण तुम्हें आना होगा। अपनी नीति और गीता का, उपदेश तुम्हें दुहराना होगा। कंस जैसे राक्षसों का अब, साम्राज…
कृष्ण होना आसान नहीं किंतु नामुमकिन भी नहीं - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
ऐसा क्यों है कि बहुत सारे लोग मुझे जान नहीं पाते हैं?श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने कहा है। ऐसा इसलिए है शायद हम अपनी भौतिकता में…
चलो चलें बदलाव की ओर - कविता - दीपक राही
चलो चलें बदलाव की ओर, नाव के सहारे किनारों की ओर, छौर मचाती उन लहरों की ओर, कलम की पैनी होती धार की ओर, चलो चलें बदलाव की ओर। रूढ़िवाद…
श्याम बनवारी रास रचैया - गीत - रविंद्र दुबे 'बाबु'
मुरली सुनाएँ धुन, मन बसिया, श्याम बनवारी, रास रचैया। जिसके नेह में, रम जाएँ सारे मुरली वाले, ओ नंद कन्हैया। राधा का मोहन, फिर आया है, …
जीना मुश्किल जनाब होता है - ग़ज़ल - दिलशेर 'दिल'
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 जीना मुश्किल जनाब होता है, रुख पे जब भी नक़ाब होता है। तेरा मिलना भी ख़ाब होता है…
तिरंगा - कविता - स्वाति कुमारी
घर-घर में तिरंगा हो, छत-छत पे तिरंगा हो, मंदिर भी नहीं छूटे, मस्जिद पे तिरंगा हो। मन में तिरंगा हो, तन पे भी तिरंगा हो, मज़हब से दूर हो…
वृक्ष महिमा - दोहा छंद - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
धरती को दुख दे रहे, धूल,धुआ अरु शोर। इनसे लड़ना हो सुलभ, वृक्ष लगे चहु ओर॥ विटप औषधी दे रहे, रोके रेगिस्तान। तरुवर मीत वसुन्धरा, कलियुग…
त्याग भूमि की जय हो - कविता - ईशांत त्रिपाठी
अगणित वर्णित पठित कथानक, भरतखंड का शौर्य सनातन। भारती गरिमा अणिमा प्रकाशक, आप्त व्याप्त अपावृत व्यापक। संयम सत्य स्नेह पराक्रम, साहस श…
हाँ तुम - कविता - इमरान खान
हाँ तुम! कालिदास की उपमाओं के समान अभिज्ञान शाकुंतलम सी प्रतीत होती हो! हाँ तुम! रूप मोहिनी हो! हाँ तुम सुंदरता का कालजयी उदाहरण हो!…
आज़ादी का अमृत महोत्सव - कविता - डॉ॰ सत्यनारायण चौधरी
आओ सब मिल कर मनाएँ उत्सव, आज़ादी का अमृत महोत्सव। साल पचहत्तर बीते हैं अभी तक, नाम भारत का गूँज रहा जल थल नभ तक। उड़ान जो भरी है अब नह…
ध्वज हर घर में फहराता है - गीत - उमेश यादव
तीन रंग में रंगा तिरंगा, ध्वज हर घर फहराता है। शौर्य शांति और प्रगति से, सबका मान बढ़ाता है॥ हरा स्वेत केसरिया रंग का, ध्वजा हमारी शा…
आज़ादी का अमृत महोत्सव - कविता - बृज उमराव
बीत चुके हैं वर्ष पचहत्तर, बेड़ी कटी ग़ुलामी की। वर्ष गाँठ हम सभी मनाएँ, वतन की इस आज़ादी की॥ अनगिनत शहीदों को श्रद्धांजलि, अर्पित देश य…
आज़ादी का पर्व - दोहा छंद - द्रौपदी साहू
वीरों के संघर्ष से, मुक्त हुआ जब देश। लहर उठी आनंद की, दूर हुआ सब क्लेश॥ आज़ादी का पर्व है, करते सब सम्मान। मन में भर उत्साह से, गाते ह…
आज़ादी की आँधी महात्मा गाँधी - कविता - मदन सिंह फनियाल
ढाल-तलवार को छुआ नहीं, विजय पताका फहरा दी। सुलगा के चिंगारी आज़ादी की आग दिलों में लगा दी।। त्याग कर पथ हिंसा का, जोत अहिंसा का जगा दी।…
ये आज़ादी का अमृत महोत्सव - कविता - गणपत लाल उदय
ये आज़ादी का अमृत महोत्सव सबको मनाना है, जान से प्यारा यह तिरंगा हम सबको फहराना है। उनके पदचिन्हों पर आज हम सभी को चलना है, वीर-सैनान…
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