त्याग भूमि की जय हो - कविता - ईशांत त्रिपाठी

अगणित वर्णित पठित कथानक,
भरतखंड का शौर्य सनातन।
भारती गरिमा अणिमा प्रकाशक,
आप्त व्याप्त अपावृत व्यापक।
संयम सत्य स्नेह पराक्रम,
साहस शील धैर्य धर्म,
जीवन त्याग तपोमय मर्म,
पुण्य परिष्कृत वृत्ति कर्म।
भारत की भारतीयता सिंचित,
प्रिय भावों में अजर अमर।
बलिदान मूल स्तंभ यहाँ का,
प्राण-प्रतिष्ठित अडिग अटल।
कितने भी गाथाएँ गिन लो,
सब हैं त्याग प्रधान उज्जवल,
आर्यवर्त की शस्य श्यामला,
दिग दिगंत बलिदान सफल।
यहाँ नारी बालक पशु पक्षी सब,
जड़ चेतन भी त्यागी हैं।
ब्रह्माचरण आदर्श स्थापन,
आध्यात्म नाद गुंजारी है।
पन्नाधाय ने ममत्व त्याग से राज्य की शोभा बढ़ाई है,
अस्थियों का अभित्याग कर दधीचि ने कीर्ति डंका बजाई है,
बलि और कर्ण भी त्याग-दान से प्रभु की महिमा पाई है,
त्याग तपस्या से ही संभव आत्मसुख फलदाई है।
यश का मुझको भान नहीं,
ना लोभी हूँ धन-जन का।
जीवन तृप्त हो त्याग परोपकार 
मुदित साकार वृक्षों सा।
छल दंभ द्वेष पाखंड झूठ अन्याय बलात परित्याग करो,
शुद्ध सरल शुचि प्रेम सुधासम नित्य प्रिय व्यवहार करो।
नाना त्याग उदाहरण गिनते,
मैं नतमस्तक हो जाता हूँ।
वीणापाणि को प्रणाम कर,
मैं ख़ुद भी त्यागी बन जाता हूँ।
भारतमाता की जय हो!
त्यागभूमि की जय हो!
जय हो पुण्यभूमि की!
देव भूमि की जय हो!

ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्यप्रदेश)

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