कल तलक - मुक्तक - श्याम सुन्दर अग्रवाल

1
कल तलक तो हम भी होते थे सुघड़,
क्या हुआ जो आज हैं ऊबड़-खाबड़।
जो ख़ामियाँ हममें नज़र आतीं हैं तुम्हें,
ये, वक्त ने की है हमारे साथ गड़बड़।

2
कल तलक हम थे किसी से भी न कम,
हमने भी फहराया बहुत अपना परचम।
किस लिए ठहरा रहे आज यूँ कमतर हमें,
हम तुम्हारे सामने हैं, क्या किसी से कम?

3
कल तलक हम जानते थे गीत गाना,
था हमारा शौक़ भी सुनना सुनाना।
वक्त ने हमसे कहा अब मौन हो जाओ,
हमने तो बस वक्त का कहना है माना।

4
कल तलक जो लोग हमको जानते थे,
कल तलक वो लोग हमको मानते थे।
हमको वो यारों का यार कहा करते थे,
यार वो हमारी नब्ज़ को पहचानते थे।

5
कल तलक हम भी थे चमन वाले,
कल तलक हम भी थे रतन वाले।
क्या हुआ आज हैं क़फ़स में हम,
कल तलक हम भी थे गगन वाले।

श्याम सुन्दर अग्रवाल - जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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