हाँ तुम!
कालिदास की उपमाओं के समान
अभिज्ञान शाकुंतलम सी प्रतीत होती हो!
हाँ तुम!
रूप मोहिनी हो!
हाँ तुम
सुंदरता का कालजयी उदाहरण हो!
हाँ तुम
मेरी कल्पना की मेनका का ही तो रूप हो!
हाँ तुम!
प्रेम की परिभाषा,
घनीभूत इच्छाओं की ज्वाला ही तो हो!
बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर
ख़ुद को बुद्ध के समान समर्पित कर दूँ!
वेदना क्या होती है
में भी जान लूँ!
रामगिरी के पर्वत पर दिन बिताकर
में भी जान लूँ!
प्रियतमा के विरह से
यक्ष के हाथों से
सोने के कड़े कैसे नीचे खिसक गए थे!
ये प्रेम का अंत नहीं है!
ये शुरुआत है!
उस कालजयी महाकाव्य की
कोई तुलसीदास नहीं कोई वाल्मीकि नहीं!
इमरान खान - नत्थू पूरा (दिल्ली)